अक्सर ये लोगो से सुना हैं कि तुम घर से निकले नही अपने शहर से निकले नही तो तुमने दुनिया को समझा नही जमाने को अभी जाना नहीं। तुम आधे सच आधे हकीकत से रूबरू हुए हो अभी तो बहुत कुछ समझना हैं अभी बहुत कुछ जानना हैं अभी तो चंद लोगों से मिले हो अभी उसमे ही उलझ गए हो अभी तो कई और चेहरे मिलेंगे वो भी रंग बदलेंगे रिश्ते अभी तुम कुछ समझे हो अभी तो और बहुत कुछ हैं जिससे वाकिफ नहीं हुए हो । ये दुनिया बहुत अलग हैं जरा नजर और नजरिए को बदलो तुम अभी दुनिया और जमाने को पूरी तरह से समझे नहीं हो।।
तुम रुके तो तुम्हें चलाने कोई नहीं आएगा तुम थमे तो तुम्हें आगे बढ़ाने कोई नही आएगा तुम खुद को खो बैठोगे इस रंग बदलती दुनिया की भीड़ में तुम्हें उस भीड़ से निकालने कोई नहीं आएगा।
मानो या न मानो सच तो यही हैं तुम्हें खुद को खुद ही समझना हैं, समझाना हैं तुम्हें समझाने कोई नहीं आएगा।।
तुम्हारा नाम और काम जितना बड़ा होगा उतनी ही उंगलियां उठाई जाएंगी। तुम कितने भी बेहतर से बेहतर बन जाओ तुम्हे तुम्हारी कोई न कोई कमियां जरूर दिखाई जाएंगी।।