आज भी याद हैं, मुझे
आज भी याद हैं, मुझे,
वो बरसातो में सडको पर आशियाने की तलाश में भटकना,
उस पर बडे-बडे मंत्रियो के ढकोसले वाले बडे-बडे दावे,
आज भी याद हैं,मुझे,
सबकी सच्ची लगने वाली बाते जो चाहकर भी सच न हो सके,
आज भी याद हैं,मुझे,
लोगो का हमे दलित वर्ग का बोलकर समाचारो में हमे सम्मान देना,
आज भी याद हैं,मुझे,
वो बारिश की बूंदो से अपना पेट भरना,
आज भी याद हैं,मुझे,
समाचारो में हमारे लिए झूठी उम्मीद देना,
आज भी याद हैं,मुझे,
लोगो का हमे यू धूतकारना,
आज भी याद हैं,मुझे,
रोज इसी उम्मीद में जागना की हम भी एक आशियाने में रहे,
आज भी याद हैं,मुझे,
उन बेनाम उम्मीदो का पूरा न होना,
आज भी याद हैं,मुझे।
- Freelywriting14
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