Khawabon ke jahan me ek duniya hai meri
Jisme tu mera hai aur mai teri....
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Khawabon ke jahan me ek duniya hai meri
Jisme tu mera hai aur mai teri....
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माना कि हम, काश में है
सच है कि, आश में है
ज़िन्दगी के इस सफर में
हम, मंजिल की फ़िराक में है
बनाते जा रहे हम, राहे खुद की
मंजिल मिलेगी, बस इसी विश्वास में है....
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आहट हो रही नये साल की
बीता साल अपने आख़िरी पढ़ाव पर है
जो दे रहा सौगात नयी उम्मीदों की
खिलता सवेरा जिसकी पहचान है
बस बढ़ते रहना तुम वक़्त के साथ
हर दिन एक नई शुरुआत है....
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काफी दूर निकल आये हम
चंद खाव्हिशो के पीछे पीछे
भटकते रहे कल्पनाओं में
वास्विकता से वास्ता छोड़ बैठे
चकाचौंद की इस नगरी में
हम खुद की रंगत खो बैठें
रखते थे फासला जिससे
उसी में शरीक़ हो बैठें
खुद की तलाश में निकलें
खुद ही खुद को खो बैठें....
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जो साथ ना हो कर भी
साथ है ,ऐसा एक एहसास हो तुम
जो एक खाव्ब मैं, हर रोज़ सच करना चाहूं
उस खाव्ब की हक़ीक़त हो तुम
जो होती मुझें इज़ाज़त खुद की तकदीर लिखने की
तो उसमें लिखी आखिरी फरियाद हो तुम
लफ्जों से जो बयां ना हो पाये, उस ख़मोशी की
आवाज़ हो तुम
और इस दिल में बस इतनी सी गुज़ारिश है रब से
वो पूरी करें तो आखिरी खाव्हिश हो तुम....
Kritika....
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जो रूठ गया खुद से तू
तो मनाने कौन आयेगा
तेरी चेहरे की मुस्कान को
वपिस सजाने कौन आयेगा
इस भीड़-भाड़ वाली, खाली दुनिया में
तेरा साथ निभाने कौन आयेगा
जो रूठ गया खुद से तू
तो मनाने कौन आयेगा
तेरी बोलती सी ख़ामोशी में
शब्दों को सँजोने कौन आयेगा
ग़र छोड़ी अपनी ही परवाह तू ने
तो फ़िक्र जताने कौन आयेगा
जो रूठ गया खुद से तू
तो मनाने कौन आयेगा
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बीते गये जो
बीते गये जो ,लगते है
वो ही लम्हे अपने से
गुजर रहे जब पास से
तो लगते थे बिखरे से
आज उन्हीं में अपना जीवन
सजा संवरा सा लगता है
जो बीत गया उसमे ही
खिला सा कल लगता है
यादों के काफ़ी पन्ने वो
इस सफ़रनामे में जोड़ गया
बीत गया हर एक लम्हा
बस यादें अपनी छोड़ गया
कुछ ऐसा ही खेल वो
हमारे संग खेल गया
कल से शुरू कर हमें
फिर कल पे ही मोड़ गया......
Kritika....
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अपनी पीर कहि ना जाये
दूसरो को समझाये
जग की चलाचल भीड़ में
हर कोई पिसता जाये....-