Kritika Joshi   (Kritika)
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Joined 8 April 2025


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17 APR AT 11:23

जिंदगी की सारी साँझे तेरे इंतजार लगने लगी हैं,
कि ये बेकरारी भी पराई सी लगने लगी हैं,
तेरा इंतजार का को मोह कुछ इस प्रकार हैं,
कि तेरी एक झलक को पाने में अब सदियां लगने लगी हैं।

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12 APR AT 21:32

ज़िन्दगी ने सिखाया हमें,
कि क्यों कोई अपना नहीं हो पाता,
कि कैसे कोई इस दिल को नहीं समझ पाता
ज़िन्दगी ने सिखाया हमें,
कि क्यों रिश्तों में जंजीरें होती हैं,
कि कैसे बोले गए अलफाजों से आत्मा रोती है
ज़िन्दगी ने सिखाया हमें,
कि आंसू आए भी तो उन्हें कैसे छुपाना है,
कि कोई याद आए भी तो उन्हें कैसे भुलाना है
ज़िन्दगी ने सिखाया हमें,
कि हम साया कोई हमारा नहीं होता,
इस ज़िन्दगी के सफर में,
कि मान लो तुम हो अकेले इस सफर में ।

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10 APR AT 23:16

बाबूमोशाय, जिंदगी चाहे छोटी हो या चाहे लंबी हो, मन के उस आईने को पहचानिए जो आपको सच दिखाए ताकि आपको जरूरत न पड़े किसी ओर के समझाने की, क्योंकि समझाता कोई नहीं हैं, सब बस जानना चाहते हैं।

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10 APR AT 10:22

संघर्ष तूने भी किया,
संघर्ष मैंने भी किया,
फिर भी संघर्ष मुझे मेरा ज्यादा दिखता हैं।
आंसू तुझे भी आए,
आंसू मुझे भी आए,
फिर भी आंसू मुझे मेरे ज्यादा दिखते हैं।
त्याग तूने भी किया,
त्याग मैंने भी किया,
फिर भी त्याग मुझे मेरा ज्यादा दिखता हैं।
लेकिन,
कामयाब तू भी हुआ,
कामयाब मैं भी हुई,
पर कामयाबी मुझे तेरी ज्यादा क्यों दिखती हैं।

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10 APR AT 10:17

पग पग चलता राही एक,
जाने कहां भटक गया
मंजिल ढूंढते ढूंढते राही,
खुद ही को भूल गया
साथ ना उसके,
कोई भी एक शख्स था,
अकेले चलता राही,
खुद ही में मस्त था
थी ना दुनिया की फिकर उसे,
थी ना जुबानों का डर
हर रोज गम की पोटली बांधकर चलता था वो मगर
सपनों के आस्मां से गिरता था,
हर सवेरे वो नई उम्मीद जगाता था,
हर शाम मुंह की खाता था
दिल की बातें सुनते सुनते,
दिल ही के रिश्ता तोड़ गया
पग पग चलता राही एक,
जाने कहां भटक गया।।

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9 APR AT 8:32

आज फिर एक साथी चला गया,
सर्दी की ओस जैसे धूप खिलते ही खो गया।
साथी के जाने से बैठे हैं सभी यार,
सग्गड़ में आग जलाकर सेख रहे है हाथ।
हाथों की लकीरों को देख देख बार बार,
सोच रहे हैं, क्या चंद पलकों की हैं जिंदगी यार।
मन से हार गए हैं सब,
आंखों के आंसू सूख गए है अब,
खोया जो है, वो मिल ना पाएगा,
ये सोच कर पल पल जी घबराएगा

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9 APR AT 8:22

मन में बसी वहम की बस्ती से आखिर कब निकालोगे मुझे,
जो कभी थी ही नहीं,
उस किरदार को कब तक ढालोगे मुझे,
गुस्सा,
शिकायतें,
नाराज़गी,
दर्द,
चल सब तेरे हिस्सा आया, ये मान लिया मैंने,
मुझे मिली खुशी, ये भी मान लिया मैंने,
लेकिन क्यों दर्द मुझे फिर भी होता,
क्यों दिल मेरा फिर भी रोता है,
क्यों आंसू मेरे आज भी न रुकते हैं,
क्यों अल्फ़ाज़ तेरे आज भी मुझे चुभते हैं,
चल अब तेरी हर एक बात से,
मैं तुझे रिहा करती हूँ,
हमारी दोस्ती को,
और तुझसे मिली तेरे ही कड़वी बातों को,
आज एक पुराने बक्से में दफन करती हूँ,
इस मन को मै आज तेरी बातों से आज़ाद करती हूँ।


- Kritika

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