ये सामाजिक बंधन मुझे दीमक से खाते हैं,
ये छिछले रिवाज़ ज़माने के ना मुझे भाते हैं
मैंने देख ली अंधियारी रात बहुत,
मैंने देख लिया आंधी तूफान बहुत,
कड़वी वाणी से अब मन को विचलित नहीं करना है,
मुझे आदर्श नारी नहीं बनना है, अब मुझे खुद के बनाए पथ पर चलना है,
मेरे अंदर में केवल क्रांति की ज्वाला है,
जिससे अंधियारी रात को सवेरे में बदलना है।-
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उलझन है हृदय में मेरे और दिन रात यह व्याकुलता से है भरा,
मेरे अंतर मन में शोर है और मेरा अहंकार मुझे प्रताड़ना दे रहा,
जो कहता था एक दिन महान बनेगा तेरा अस्तित्व आज वो चकनाचूर हो चुका।
मैं क्रोधित हूं अपने आत्मस्वरुप से जिसे बस लक्ष्य ही तो पाना था ,व्यथा दी उसे मैने ना जानें कौन से रास्तों पर भटका दिया। जिद्द थी महान बनने की, पर क्या यह इतना सरल है,
जीवन के संघर्षों से मैने सीखा सामान्य रहना भी कठिन है।-
ना तुझे पाने की चाहत,
ना तेरे दूर जाने पे कोई शिकायत ,
तेरी जिन्दगी के कुछ लम्हें भी मिल जाएं
तो हम खुद को खुशनसीब समझेंगे ।।-
मोहोब्बत भर कर चली थी जो हमसफ़र ढूंढने वो आंखें अश्कों से भर गई,
और बेइंतहा मोहोब्ब्त करते करते हुआ ये की वो रूह एक दिन मोहोब्बत से ही डर गई।।-
खुदा ने दिल बनाया और उस दिल में मोहोब्बत ,
पर उस मोहोब्बत में सब्र करना नहीं सिखाया,
अगर अशिको में सब्र होता तो बहुत से मोहोब्बत के अफसाने पूरे हो जाते।।।-
खुद से ज़्यादा मोहब्बत किसी दूसरे को करते करते,
एक दिन उस शख्स को खुद से ही नफरत हो गई,
टूटी कलम से इश्क़ लिख तो दिया उसने,
पर अश्क इतने बहे की,
वो अफसाना ही मिट गया लिखते लिखते।।।
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वो कहतें हैं की सुली पर चढ़ाने से इन्सान तड़पता है,
लगता है किसी ने अब तक उनका दिल नहीं तोड़ा ।।।-
मेरे अन्दर जो मोहोबत का समंदर था
वो बह गया धीरे धीरे आंखों से अश्क बन कर ,
अब जो बाकी रह गया है वो बस रेत का दरिया है।-
बहुत निखरे से लगते हो
किसी से दिल लगा लिया क्या,
आजकल पांव जमीं पर नहीं रहते तुम्हारे
किसी ने अपना बना लिया क्या,
बस थोड़ा संभल के ए मेरे दोस्त
मोहब्बत की राहों में कांटे बहुत है ,
किसी ने तुम्हें समझा दिया क्या ।-
मोहोबत के अफसाने अधूरे रह गए ,
अब मुजरिम किसे ठहराया जाए इस टूटे दिल का ,
नजर पड़ी हथेली पर मेरी तो पता चला
इन हाथों में तो मोहोबत की लकीरें ही नहीं,
अब मुजरिम किसे ठहराया जाए ।-