मै तेरी किसी कहानी का पात्र बनना चाहता हूं
हक़ीक़त मे तेरा ना हूआ,
तेरी कहानी मे तेरा होना चाहता हूं
मेरे मुताबिक़ चले ये कहानी
अपनी मुहोब्बत से तेरी सुबह करना चाहता हूं
तेरे संग ये ज़िन्दगी बसर करना चहता हूं
ख़ाबों के ख़ाब को तेरी कहानी मे जीवंत करना चाहता हूं
हक़ीक़त मे तेरा ना हुआ
तेरी ही कहानी मे तेरा होना चाहता हूं-
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
उम्र-ए-रफ़्त... read more
प्रेम की मिसाल कृष्ण रहे
भीष्म तो बस प्रतिज्ञा से जूझते रहे
अर्जुन ने प्रेम से जीत ली धरा सारी
और कर्ण अपनी प्रतिज्ञा मे उलझते रहे
प्रेम प्रतिज्ञा से चला कब,
इंसान बिन प्रेम के जिया कब
वादों के समंदर से चुनिंदा लम्हो मे प्यार पलता रहा
प्रतिज्ञा की आंच मे तो बस इंसान जलता रहा
प्रतिज्ञा की आग ने सुखा दिया इंसान के भीतर के प्रेम को
और प्रतिज्ञा मे जकड़ा इंसान तन्हाई के शूल मे धसता रहा-
वो घुला मुझमे ऐसे जैसे सागर मे नमक रहता हो
आकाश मे जैसे समय रहता हो
सागर के बहुमूल्य खजानो से कोई मिलता नही
जैसे तू मेरे भीतर मिलता हो
तेरी यादें मेरे संग ही जलेंगी
मेरे लहू मे तू घुलता हो
शांत, कर गया मेरे भीतर कुछ
मानो उसमे ध्यान सा 'शून्य' रहता हो-
उम्र भर हार कर इश्क़ से, आख़िर मे ख़ुद को चुना
ख़ुद से भी मिल ना पाया तो ख़ुदा को मूर्तियों मे चुना
ख़ुदा और मेहबूब मे फिर द्वंद छिड़ा
भीतर दो भागों मे बंटा
मध्य मे मै, ख़ुदा और मेहबूब मे झूलता रहा
इसका समाधान मिलना मुश्किल लगा
अंततः सन्यास का मार्ग दृष्टिगोचर हुआ
जो थोड़ा डरावना, पर ज़िन्दगी गुज़र करने को आसान लगा
मोह के सागर से पार उतारने को
ये सौदा थोड़ा मंहगा लगा
जो जीते जी अपना पिंड दान करवाता है
ये विचार कुछ दिनो मे ही धुंधला पड़ा
और पुनरावृत्ति का खेल शुरू हुआ
पुरानी यादों ने मस्तिष्क को बांधना आरंम्भ किया
मेहबूब और मै मे, फि़र से द्वंद हुआ
अबकी बार मैने ख़ुद से पहले ख़ुदा को चुना
ख़ुद को शिव के जाप मे अर्पित किया
किसी नियम मे बांधे बिना ही सुकूं भीतर जाने लगा
जो इश्क़ और ख़ुदा को बांटने लगा
पर मुझे ये बरकार रखना आया नही
और फि़र से इश्क़ की यादों मे मै तैरने लगा
पर भीतर कुछ समझाता रहा
शिव और इश्क़ को एक करता रहा
दोनो हमेशा से एक ही तो थे
सब आख़िर मे शिव ही तो थे
इश्क़ भी मै भी अब शिव हो गये
शिव के चरणो मे समर्पित सब हो गये-
वापिस कुछ भी नही आता कृति
ना इश्क़ ना समय ना उम्र
मै जितना दे सकती थी मैने उतना दिया
जितना प्यार मेरे भीतर था उतना दिया
उस से ज़्यादा मेरे भीतर प्यार होते जाता
तुम रहते साथ ये उपजाऊ होते जाता
तुमने निर्णय रुकने का लिया
पर कुछ शर्तों पर लिया
उन सबमे उत्तीर्ण हो पाना
मेरे सामर्थ्य से बाहर था
और तुमसे दूर होना
मेरी प्रतिज्ञा की क़ाबिलियत से बाहर
तुमने फिर भी निर्णय दूर जाने का लिया
सबकुछ भूल कर ख़ुद मे सिमट जाने का़ लिया
बावजूद इसके हम दोनो के भीतर
अब भी बचा कुछ विशेष है
जो अपने अस्तित्व की खोज मे बैचेन है-
जितना भी घूमा आखिर मे घर ही अच्छा लगा
भटका चाहे कितना भी, वो नैनिताल सा सुकूं लगा
खोजते खोजते घुल सा गया मुझमे वो
जितना दूर भागा उससे, वो
अल्मोड़ा सा, यादों मे घुलने लगा
जितना भी घूमा आख़िर मे घर ही अच्छा लगा-
खवाहिशे आख़िरी आखिरी ना रही
ज़िन्दगी की दहलीज़ मे ज़िन्दगी ना रही
मौत के इंतज़ार मे रुका हुआ जिस्म
मौत आयी पर मौत आख़िरी ना रही
मृत्यु और जन्म के बीच खवाहिशो का जज़ीरा
ज़िन्दगी कभी सुलझी ना रही-
इश्क़ ए़ महक मेरे इश्क़ की तुम तक जाएगी
महकाएगी तुमको तुम्हारे जिस्म को भिगाएगी
हम तो निक़ल जाएंगे तुम्हारी महफ़िल से
हमारी महफ़िल मे हर शाम महक ए़ इश्क़ तुम्हारी आएगी
जो हमारी इश्क़ की महक से मिलकर तुम्हारे ज़हन को महकाएगी
आज़ाद परिंदा सा इश्क़ उड़ जाएगा एक रोज़
और तुम्हारी इश्क़ ए़ महक किसी और को महकाएगी
फिज़ाओ मे रहेगी ये मुहबब्त की महक कृति
और ये इश्क़ ए़ महक रूह को महकाएगी-
भीष्म सी अटल उसकी प्रतिज्ञा हो गयी
इश्क़ से उपर ना लौटने की उसकी ज़िद हो गयी
और इतंज़ार करे, और तुझको याद करें
तेरी ज़िद सी अपनी इतंज़ार करने की ज़िद हो गयी
देखते रह यादों मे हमको
ख़ुद मे तुझको देखने की अपनी आदत हो गयी
और फिर हम दो दोराहे पर आकर रुक गये कृति
उसको जाने की जल्दी, और हमको उसे रोकने की ख्वाहिश रह गयी
उसकी तो भीष्म सी अटल प्रतिज्ञा हो गयी-
बचाने स्त्रियों को पुरुषो की जमात आएगी
उन्हे ही बेचने पुरुषो की वासना आएगी
ओहदा हो कोई अग़र स्त्री का समाज मे
उसे गिराने पुरुषों की रोटी आएगी
दिन समर्पित कर दिये और देवी सा पूज लिया
और फिर नोचने जिस्म को पुरुषों की सत्ता आएगी
आत्म रक्षा कर ना सकना और हीनता मे डूब जाना
स्त्रियों को दबाने पुरुषो की ख्वाहिशें आएगी-