इक व्यक्ति का बचपन उन खास लम्हो से होता है, जिसमे वह जीवन को बिना किसी चिंता में व्यतीत करता है।मां की गोद, पिता का कंधा और सुबह शाम खेलना ऐसा होता है बचपन।पर कैसा होता होगा उनका जीवन जिन्हे जन्म लेते ही त्याग दिया गया हो या ईश्वर ने ही उससे उसका संसार उसके माता पीता को छीन लिया हो, आखिर कैसा होता होगा उनका बचपन....
ऐसा मेरा बचपन था
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न पैरों में चप्पल थी,
न थे तन पर कपड़े,
इधर उधर भटकता था,
ऐसा मेरा बचपन था।
सड़को के कोनो पर बैठा,
आंसू लिए सिसकता था,
न था सर पर कोई आंचल,
ऐसा मेरा बचपन था।
न थी कोई करुणामयी आंखें,
जिसने मुझे देखा होगा,
बस धुतकारा मैं जाता था,
ऐसा मेरा बचपन था।
पेट पालने को अपना,
गाड़ियो के पीछे भागता था,
रातों को पेड़ के नीचे सोता,
ऐसा मेरा बचपन था।
न माँ की कोई ममता थी,
न था पिता का सहारा,
जब-जब भी सड़को पर गिरा,
खुद ही उठकर आया था।
न किसी ने हाथ बढ़ाया था,
न किसी ने राह दिखायी थी,
क्या जानूँ क्या होता बचपन,
मेरा बचपन तो ऐसा था।
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