Kriti Keshari   (कृतिका (कृति))
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ख़ुद को समझने का ही तो मौका दिया है,
ज़रा ठहरो, ज़रा वक़्त दो,
तुम भी मुझे समझ ही लोगे।
Joined 25 August 2020


ख़ुद को समझने का ही तो मौका दिया है,
ज़रा ठहरो, ज़रा वक़्त दो,
तुम भी मुझे समझ ही लोगे।
Joined 25 August 2020
24 JAN 2022 AT 17:17

थोड़ी मनमानियां, कुछ शैतानियां,
संग की हैं हमनें,
मां की डांट, पिता की लाड़,
संग जी हैं हमनें।

मिठाईयों की खुशी
तो कभी लौकी के गम में,
साथ रहे हैं दोनों
हर मौसम में।

चॉकलेट टॉफी की लड़ाई हो,
चाहे जानवरों जैसी हाथापाई हो,
या एक दूसरे की सुताई हो,
सब की हैं हमनें।

कभी दरवाज़े के पीछे छिप के डराते,
कभी झूठ-मूठ की कहानियां बनाते,
तो कभी मगरमच्छ के आसूं बहाते,
किस्से कई थे हमारे बचपन में।

ऐसे ही लड़ते झगड़ते,
एक दूसरे के पीछे दौड़ते,
दिन गुज़र गए,
और बदल गया आज बीते हुए कल में।

उम्र बढ़ गई हमारी, HAPPY
और बढ़ गए तुम कद में, BIRTHDAY
पर चाहे जितना भी बढ़ लो, BROTHER!!
रहोगे मुझसे छोटे ही हर सूरत में।

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23 JAN 2022 AT 16:49

कितनी अजीब है न ये ज़िंदगी भी,
अपने छोटे से सफ़र में
ये हमें कितनों से मिलवाती है,
और फिर उन कितनों में से कुछ हमारे ख़ास बन जाते हैं।

पर सफ़र में आगे बढ़ती ये ज़िंदगी
उन ख़ास को किसी मोड़ पर छोड़ जाती है,
इस उम्मीद में कि कहीं किसी मोड़ पर
कभी-ना-कभी उनसे फिर मुलाक़ात होगी।

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26 NOV 2021 AT 16:58

वो रात क्रूरता की थी,
वो रात निष्ठुरता की थी,
जब रात के अंधकार में दहके थे नफ़रत के गोले,
वो रात कुछ ऐसी बर्बरता की थी।

वो रात कायरों की थी,
वो रात अधमियों की थी,
जब गूंजी थी आसमां में दहशत की चीखें,
वो रात कुछ ऐसे अकर्मियों की थी।

वो रात वीरों की भी थी,
वो रात शमशीरों की भी थी,
जब लिखी गई थी रक्त से शौर्य की गाथाएं,
वो रात ऐसे रणधीरों की भी थी।

वो रात क्रंदन की भी थी,
वो रात अभिनंदन की भी थी,
जब शहीदों ने आन बचाई थी देश की,
वो रात ऐसे कर्मनिष्ठों के अभिवंदन की भी थी।

आओ उस रात को याद करें हम,
जो चले गए उनका सम्मान करें हम,
रक्त रंजित हो कर भी जो लड़ते रहें थे,
उन वीरों का तिरंगे से श्रृंगार करें हम..
तिरंगे से श्रृंगार करें हम।

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15 SEP 2021 AT 17:20

एक वक्त था कि जब बारिश की छोटी-छोटी बूंदें इस तन से लिपटती थीं, तो इस मन को दुनिया भर की खुशियाँ दे जाती थीं।

उस वक्त में, उन झूमते-नाचते, मदहोशी में दूसरों को पीछे छोड़, आगे बढ़ते बादलों के नीचे, उन बारिश की बूंदों के बीच खड़े होकर ऐसा लगता था के मानो.. मानो ये दुनिया कितनी खूबसूरत है और इससे भी खूबसूरत इसे बनाने वाला।

वो बारिश जैसे हमारे लिए ही होती थी। इस तन को छू कर पल भर में गुज़रना और हमेशा रहने वाला वो खुशनुमा एहसास छोड़ जाना, केवल बारिश की इन बूंदों को ही आता है।

बारिश तो आज भी वही है, जो एहसासों का तोहफ़ा ले कर मन की चौखट पर दस्तक देती है। अगर बदला है, तो समय के साथ करवटें लेने वाला ये मन, जो उन एहसासों में अब खुशियां नहीं केवल सुकून ढूंढता है। वो सुकून, जो तन को बारिश से दूर करता है पर मन को बूंदों के बीच खड़ा कर फिर वही हमेशा रहने वाला ऐहसास छोड़ जाता है।

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10 AUG 2021 AT 0:50

मैंने सांसों को ठहरते देखा है,
मैंने दिल को सुलगते देखा है,
मैंने आंखों को झुलसते देखा है,
मैंने सपनों को बिखरते देखा है।

मैंने ख्वाहिशों को छूटते देखा है,
मैंने उम्मीद को टूटते देखा है,
मैंने किस्मत को पलटते देखा है,
मैंने सपनों को बिखरते देखा है।

मैंने साहस को सिहरते देखा है,
मैंने यकीं को उखटते देखा है,
मैंने ज़िंदगी को बिगड़ते देखा है,
मैंने सपनों को बिखरते देखा है।

मैंने समय को सिखाते भी देखा है,
मैंने हार को हराते भी देखा है,
गर लगन सच्ची है तुझ में तो,
मैंने सपनों से हक़ीक़त को संवारते भी देखा है।

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3 JUL 2021 AT 23:40

ज़िंदगी थोड़ी फुरसत तो दे,
सांसों को थामने की थोड़ी मौहलत तो दे।
चाहत जिन ख़्वाबों की धड़कनें बढ़ाए रखती है,
उस चाहत को जीने की थोड़ी बरकत तो दे।
ऐ ज़िंदगी, थोड़ी फुरसत तो दे..

पांव की लकीरें जो कांटों ने खिंची हैं,
उन्हें थोड़ा मरहम से भरने तो दे।
दर्द का दरिया जो आंखों में भरा है,
उसे प्याले से थोड़ा छलकने तो दे।
ऐ ज़िंदगी, थोड़ी फुरसत तो दे..

काट समय की जो तन को मिली है,
उस तन को थोड़ा सवरने तो दे।
सपनें जो बिखर के मन में छिटे हैं,
उन टुकड़ों को थोड़ा सिमटने तो दे।
ऐ ज़िंदगी, थोड़ी फुरसत तो दे..

तुझे जी भर के जी लूं,
बस ये इनायत तू दे।
तेरे हर रंग से मिल पाऊं,
बस इतनी रहमत तू दे।
ऐ ज़िंदगी, थोड़ी फुरसत तो दे।।

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25 JUN 2021 AT 17:03

बारिश में भीगते नज़ारों को देखना तो हर मन को सुकून देता है,
पर जब आसमान का आंचल सिल जाए,
और पानी की बूंदें उसमें सिमट जाएं,
उसके बाद धरती का श्रृंगार देखने लायक होता है।

जब पानी की धार से भूमि भीग चुकी होती है,
और धरती के सिर पर काले बादल जमघट लगाए घूमते हैं,
तो लगता है मानो प्रकृति का हर रंग खिलखिला रहा हो।
आंखों से जो अब तक छिपा था,
वो हर सौंदर्य मन को पुकार रहा हो।

वो मौसम,
वो वातावरण,
एक अद्भुत अनुभव का जनक होता है।
ऐसा अनुभव जो बारिश की बूंदों से धुल चुके ओझल मन को स्पष्टता का दर्पण दिखलाता है,
और आंखों से उतर कर आत्मा को भी तृप्त कर जाता है।

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10 JUN 2021 AT 0:09

कागज़ की कश्ती में छिपा कर स्याही के अल्फाज़,
संग रुखसत कर दिए मैंने दिल के जज़्बात।
किसकी सुनूं, किसको कहूं,
दिल में ही रह गई दिल की हर बात।

बहते देख उस कश्ती को,
लगा के कुछ छूट रहा है,
अंतर्मन के किसी कोने में जैसे,
कहीं कुछ टूट रहा है।

बारिश की बूंदें ज्यों-ज्यों उस कश्ती को डूबो रही थीं,
ये आँखें मेरी त्यों-त्यों इन पलकों को भिगो रही थीं।

देखना नहीं चाहती थी उसे दूर जाते,
फिर भी एक टक देखती रही,
जाने क्यूं उस सर्द सावन में,
इस दिल को दर्द में सेंकती रही।

अंततः ओझल हो गई नज़रों से वो कश्ती,
आँखें भी मेरी कुछ दुःख में रोती तो कुछ ख़ुश होकर हँसती।
सुकून था की अब उन बातों को कोई ना जान पाएगा,
पर दर्द था की वो मुसाफ़िर कभी लौट के ना आएगा।
कभी लौट के न आएगा...

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4 JUN 2021 AT 17:17

Please leave me alone forever and do not turn back until my last breath

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22 MAY 2021 AT 16:24

माना की यह समय कुछ कठिन है,
परिस्थितियों के आगे हमारी शक्ति क्षीण है।
चहु ओर यहां क्रंदन का शोर है,
आंकड़ों में उलझी होती हर भोर है।

होली के रंग भी आंसुओं से धुल गए,
नवरात्र के जयकारे यहां राम नाम संग घुल गए।
कुछ अपने गहरी नींद सो गए,
तो कुछ सपनें जो सितारों में खो गए।

हर माथे पर आज चिंता का राज है,
पर निरंतर चलना ही जीवन का काज है।
धैर्य हो मन में, यही प्रबल अस्त्र है,
अपनों से बड़ा यहां, ना कोई दूजा शस्त्र है।

जो यह समय आया है,
यह भी बीत जायेगा,
पर हाथ जो छूटा गलती से भी,
साथ उसे ना कोई लौटा पाएगा।

माना की यह समय कुछ कठिन है,
गर साहस है तुझमें तो,
यह समय भी शक्तिहीन है।

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