बात लबों तक आकर भी ख़ामोश रह जाती है!
ये तुम्हारी आंखे, जो मेरे मन को मोम सा पिघलाती हैं,
मेरे दिल को ये कुछ इस तरह देहलाती हैं।
कहने को तुमसे तो बातें आज भी हज़ारों हैं,
पर तुम्हारी बेरुखी, जेहन में आते ही,
बातें सब वीरानी में गुम हो जाती हैं।
सुनो, तुमने तो अपनी बात कह दी, इशारों में,
पर ये खामोश रातें मुझे अब भी याद दिलाती हैं,
कि कहने को अभी भी कोई बात बाकी है...!!
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