आज फ़िर ख्यालों में मुलाक़ात हुई उससे,
अधुरी ही सही मगर बात हुई उससे..
कैसे मिलना हमारा अब दस्तुर हो गया है,
हकीक़त से सामना भी अब नूर हो गया है..
ख़्वाबों के ज़रिए ही सही कुछ वक्त,
उस खुदा से चुरा कर तेरे हवाले कर दूं..
खामोशियों में ही सही मगर अपने,
मन की ढेर सारी बातें तुझसे कह दूं..
मगर मेरे ख़्याल पन्नों पर रहे
तो लाजवाल होगा,
मोहब्बत नज़्म सी हो
तो साजवाल होगा..
राहें अलग है हमारी पता है मुझे ,
जाने कितनी यादों और वादों के पीछे
छूट जाने पर कोई सवाल ना होगा..
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