है धर्म का जितना बोल-बाला , उतने ही लोग बीमार बैठे हैं....
आई बनने की खबर मंदिर या मस्जिद, तो लेकर सब अखबार बैठे हैं....
और राजनीति का धंधा करने बालों क्यों दिखता नही तुम्हें????
कई देशों की आबादी से ज्यादा, युवा यहाँ बेरोजगार बैठे हैं....
धर्म जाती के नाम पर देकर हमको तलवार बैठे हैं....
क्या नौकरी क्या होती है सफलता, ये हमसे मीलों दूर उस पार बैठे हैं....
और शर्म नेताओं को क्यों आएगी?, ये शर्म का चोला उतार बैठे हैं....
वो बुड्ढे हैं जो सत्ता में हैं और हम युवा यहाँ बेरोजगार-बेकार बैठे हैं....
हम सब के नसीबों की बूढ़े पकड़ कर पतवार बैठे हैं....
नौकरी के जुमलों से चुनावी जीत के दावेदर बैठे हैं....
और जनता, जनता क्या करेगी उनका जो होकर बरदार बैठे हैं....
झूंटे विकास के नाम पर, बेच देश को कर देश का व्यापार बैठे हैं....
लेकर अपने हाथों में, कुछ अनपढ़ ये सरकार बैठे हैं....
नहीं सुनते किसी की, देखो सामने ये देश के मक्कार बैठे हैं....
और हम, हम किससे मांगते फिर रहे हैं अपने लिए रोजगार????
जब सत्ता में तो बन कर सब अंधभक्त और चौकीदार बैठे हैं।।।।
-