Krishna K Tiwari   (Krishna K Tiwari)
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Joined 9 June 2018


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31 MAY 2020 AT 18:25

सू-ए-उफ़ुक़ सुर्ख़ जो निकल रही है ज़िन्दगी
तुलूअ' हो रही है या कि ढल रही है ज़िन्दगी?

ये किसकी ख्वाहिशों में फुसूँ फूंकता है मुर्तज़ा?
ये किसके ताकचे में मिरी जल रही है ज़िन्दगी?

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11 JUL 2019 AT 14:13

वो मुझसे कहता रहता है अफसाने बीती रातों के,
मैं सुनता रहता हूं आंखों में नींद नहीं आती है अब।

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29 JUN 2019 AT 14:02

है बुरी लत मुझे आवारगी और तन्हाई,
खामखांँ कौन बयाबाँ में गुज़ारा करता।

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13 JUN 2019 AT 8:53

कोई आशिक़ भी कहो 'कृष्ण' इस घाट किनारे आया था?

एकाध चिताएं इस मसान में हरदम जलती रहती हैं।

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9 MAY 2019 AT 10:58

क्यूं कहते हो ये अंधेरे मनहूस हैं?
तुमसे ज्यादा जानते हैं ये मुझे…

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7 APR 2019 AT 23:01

लू के गर्म थपेड़ों सा कुछ,
सहरा में चीख़ती आवाज़ें।
दफ्न है सब कुछ अंदर ही,
एक मरीचिका की चाहत में।

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31 MAR 2019 AT 15:06

अस्त्र-शस्त्र से कब हारा,
निहत्थे पे वार न कर बैठे।
नफ़रत का तो मैं आदी हूँ,
डर है वो प्यार न कर बैठे।

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30 MAR 2019 AT 20:22

ये सांसें जो लेकर उधार जी रहा हूँ,
हर बार मैं नया इक किरदार जी रहा हूँ।
हूँ हँसता कभी तो, कभी ग़मज़दा हूँ,
मैं सपनों का करता व्यापार जी रहा हूँ।

मैं राहें बनाकर भटक जा रहा हूँ,
मैं बीती हुई पर ही पछता रहा हूँ।
है दरिया ख़लिश का ये बीते तो कैसे,
मैं कबसे खड़ा इस पार जी रहा हूँ।

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28 MAR 2019 AT 17:54

उस दरख़्त की शाख पर बहुत देर तक बैठा था।
उड़ गया परिंदा वो अभी सवेर तक बैठा था।

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14 MAR 2019 AT 16:38

ज़िंदा था तो जलते थे, मर गया तो जला रहे हैं।
ये दुनियावाले भी, जाने क्या-क्या रस्में निभा रहे हैं।

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