आज मन ये करना चाहे खुदसे थोड़ी बात
आज फिर से भोली सूरत आ रही है याद
कितने सन्नाटे भरे है, कितनी दुविधा मे पड़े है
ओस की बूँदों से पलकें कर रही है सवाल
फूल को मैं धूल कह दूँ या खतों को भूल कह दूँ
या कहूँ के खो गए हैं अब मेरे जज्बात
जिस जगह पे तुम मिले थे,मौन होकर हूँ वहाँ मैं
घूम कर आओगे मुझतक है मेरा विश्वास
कौन था मैं क्या हुआ हूँ? कुछ नहीं है ज्ञात मुझको
ढूँढने निकला हूँ खुदको,जग से ले अवकाश
सब यहाँ पर खुश नहीं हैं, झूठ है की दुख नहीं है
जी रहें हैं लोग छल में, जलते हैं दिन रात
दिल किसी का मत दुखाना, न किसी से बैर रखना
करना तुम बदलाव खुदमें, जैसे हो हालात
जब किसी से चोट खाना या कोई तुमको गिरा दे
बोल बम-बम और फिर से कर नई शुरुआत
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