अब चोट नहीं लगती मुझे,
बस काँच की तरह बिखर जाता हूं छोटी छोटी बातों पे,
और फिर एक ज़माना लगता है वापस जुड़ने में।
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जज़्बातों की तकलीफों से जिंदगी के लतीफों तक
बातें खेलती हैं, अल्हड़ अंजान।
वक्त का दायरा सिमट जाता है, अकेला रह जाता है इंसान।
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दो चार दोस्तों के वक़्त के लिए तरसते हैं आज,
कहाँ कल ज़हान भर के लोगों के साथ घूमा - फिरा करते थे।-
बातों का क्या है,
कभी घंटो चलती हैं,
कभी बेवजह सालों के लिए बंद हो जाती हैं।-
क्या कभी तुम किसी और की प्रेम कहानी का हिस्सा बनके जिए हो?
उन दोनो के बिछड़ जाने पर खुद रूदन किए हो?
अपनी कहानी टूटने पर वो दुःख नहीं होता
जो हिस्सा तुम्हारा, उनके अलग होने से है खोता।-
कल जो गली कूचे में मिल जाते थे, हैं अब कहाँ, ढूंढते हैं,
अपनी ज़मीन छोड़ के, सब अपना आसमां ढूंढते हैं।-
एक मुसाफ़िर की पोटली टटोलना कभी,
कुछ सपने और चंद यादें लिए फिरता रहता है ज़हान भर में।-
कैसा मोह, कैसी माया,
सब समय का किया कराया
विज्ञान को तो घोट कर पी गया,
पर मुझे इंसान समझ ना आया।-