Krishan Pal   (©अदम्य)
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Joined 9 January 2019


Joined 9 January 2019
14 APR 2024 AT 23:51

अब चोट नहीं लगती मुझे,
बस काँच की तरह बिखर जाता हूं छोटी छोटी बातों पे,
और फिर एक ज़माना लगता है वापस जुड़ने में।

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2 APR 2024 AT 11:50

जज़्बातों की तकलीफों से जिंदगी के लतीफों तक
बातें खेलती हैं, अल्हड़ अंजान।
वक्त का दायरा सिमट जाता है, अकेला रह जाता है इंसान।

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23 OCT 2023 AT 10:52

नंगे पैर गर चलेगा मुसाफिर सड़क पर, कांच तो चुभेगा ही ना

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26 AUG 2023 AT 12:31

दो चार दोस्तों के वक़्त के लिए तरसते हैं आज,
कहाँ कल ज़हान भर के लोगों के साथ घूमा - फिरा करते थे।

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22 JUL 2023 AT 11:32

बातों का क्या है,
कभी घंटो चलती हैं,
कभी बेवजह सालों के लिए बंद हो जाती हैं।

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12 JUN 2023 AT 23:15

क्या कभी तुम किसी और की प्रेम कहानी का हिस्सा बनके जिए हो?
उन दोनो के बिछड़ जाने पर खुद रूदन किए हो?

अपनी कहानी टूटने पर वो दुःख नहीं होता
जो हिस्सा तुम्हारा, उनके अलग होने से है खोता।

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7 MAY 2023 AT 12:43

कल जो गली कूचे में मिल जाते थे, हैं अब कहाँ, ढूंढते हैं,
अपनी ज़मीन छोड़ के, सब अपना आसमां ढूंढते हैं।

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23 APR 2023 AT 14:18

एक मुसाफ़िर की पोटली टटोलना कभी,
कुछ सपने और चंद यादें लिए फिरता रहता है ज़हान भर में।

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3 FEB 2023 AT 12:42

कैसा मोह, कैसी माया,
सब समय का किया कराया
विज्ञान को तो घोट कर पी गया,
पर मुझे इंसान समझ ना आया।

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22 JAN 2023 AT 3:54

आज अरमान जलते हैं,
कल ये देह जल जाएगी।
दुःख किस बात का भाई?

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