Krish Jangid   (Krishankant |kkj)
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Joined 5 December 2017


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12 MAR AT 22:23

पूत सपूत नीकल्यो, हर्षि मायड़ री हिलराय ।
पण पूत जो होवे दुर्गों, सामल सपूत भी सरमाय ।।
जद लडियो घोड़ा बदल बदल, राणो जोधो दियो संभलाय।
अब जसवंतरो जोव स्वर्ग सूं, अर दुर्गों लडियो जाय।।

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20 JAN AT 16:04

दिलों के दरमियान जो वहम ना होता,
सब बेहतर होता, कोई अहम ना होता ।

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17 NOV 2023 AT 20:59

आसपास ये शाम की,
खामोशी कितनी ज्यादा है ।
सब वैसा ही है यहां फिर,
क्यों दिल में ये बैचैनी इतनी ज्यादा है ।
कुछ पल बढ़े कुछ दिन बढ़े,
ये उम्र की साजिश इतनी ज्यादा है ।
एक और साल है बीत गया,
फिर भी मायूसी कितनी ज्यादा है ।

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29 AUG 2023 AT 20:48

I won't say things will go perfectly,
But life will go happily if you'll stay.
The burning eyes of mine,
Will get a chance to rest and play.
We won't worry about the future,
All we will do is just keep living in today.
There are so many I think,
If we try to find love's way.
And let me tell you one thing,
It's you in all my day.

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2 MAY 2023 AT 21:15

कोई धुन हो या धनक हो तुम,
बरखा में मिट्टी की महक हो तुम ।
मैं ठहर ठहर के निहारता हूं जिसको,
सुनहरी शाम में निखरी शफक हो तुम ।

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25 MAR 2023 AT 19:47

अभी ना करना बयां सब कुछ,
कुछ एहसास अपने दिल में छुपाओ।
कुछ बात रखना बचा के तब के लिए,
जब मैं पूछूं की 'और बताओ' ।

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23 FEB 2023 AT 20:27

कीमत बारिशों की समझ आने लगी है,
तेरे साथ जिंदगी पसंद आने लगी हैं।

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24 DEC 2022 AT 23:34

मना नहीं मैं मान हूं,
एक प्यारा सा स्वाभिमान हूं ।

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1 DEC 2022 AT 8:57

बीते कुछ यूं है पिछले दो शब सनम,
ना तो हम गुजरे ना गुजार ही सके ।

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1 OCT 2022 AT 12:38

घुटा घुटा सा सार है, ये दर्द आर पार है ।
मैं समेट लूं ये सादगी,किसी को ना करार है ।

घनी घनी है रहमते, क्यों मुझसे ये फरार है ।
हर श्वांस में था फलक, आज बंदिशें हजार है ।

मैं आज को उतार दूं, हर आवाज को पुकार दूं ।
की हो कही वो शोर जो, मैं भाग के नकार दूं ।

मैं ना कहूं हर बात में, हाँ शब्द को अस्वीकार हूं ।
या मैं करू चलन नया, अस्वीकार को यथार्थ दूं ।

ये पर्वतों की दौड़ है, मैं जलधी का अवतार हूं ।
है ना अंत ना शुरू, बिन मतलब की कतार हूं ।

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