Krish CHAUDHARY   (Krish Chaudhary)
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Law student
Joined 30 January 2019


Law student
Joined 30 January 2019
25 APR AT 23:03

इतने शिद्दत (shiddat) से लगाव–ऐ–धूर्त होने लगे हैं शख़्स ।। अब हमने भी सवालों का सिलसिला पूछना ख़त्म कर दिया ।।

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24 APR AT 19:02

आज का भरोसा आने वाले कल का धोका है ।।
ये बातें अब अपनी सोच को समझा देना ।।

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22 APR AT 14:42

पहले इंसानों की वार्तालापो से जाने जातें थे चरित्र इंसानों की ।।
अब तो बस फोन ही बता पाएंगे उनकी असलियत क्या है ।।

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14 APR AT 8:42

रफ्ता रफ्ता यूं किस्तों में खाती गई
– लगातार वो साहब जादी उसे । वो मर्द भी यूं भ्रम में था की लगाव ज्यादा है ।।

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10 APR AT 18:27

हमारी वार्ता पे मत जा वाजिद ।।
देख हमारे रक़ीब अभी भी जिंदा हैं ।।

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30 MAR AT 4:24

बाजारों में जो निकाला तो देखा ,
बेचने को नकाबें लगातें थे कुछ गैर चेहरे ।।
नादान मैं भी पता कहां नकाबे पहने ख़रीद फिरते हैं अपने ।।

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28 MAR AT 5:17

" यूं झुक के वफादारी करना " ये मुझे मत समझा
वाजिद ।। मैंने गुलामों की कभी इज्जत नहीं देखी।।

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28 MAR AT 4:25


" की कहते हैं "
बीच दरिया में इस कदर भी मत कर डुबोने को हमे हदें पार ।।
हम जो दुबे तो तुम भी तैर के पछताओगे ।

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27 MAR AT 9:17

दुश्मनी अगर किसी से हो तो नजर आनी चाइए।
अब हम भी उन में से तो नहीं
जो नकाब लगाए फिरते हैं

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27 MAR AT 8:53

इक वो चीज जिसने मेरा सब से ज्यादा भरोसा जीता है
की किसी पे भरोसा मत करना ।।









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