समन्दर के सैलाब से तुझे दरिया का ठहराव बनते देखा है
बाग की खिलती कली से तुझे मुर्झाया गुलाब बनते देखा है
ऐ स्त्री तुझे मैंने
पिहर की रौनक से ससुराल की लाज बनते देखा है-
क्या बताएँ तुम्हें हाल ए दिल अपना
तुम्हें समझने की चाह में
हम खुद ही उलझ बैठे हैं-
क्या लिखूं इस रिश्ते पर
जो मेरी पूरी जिंदगी है
मैं उसकी जिंदगी का हिस्सा भी नहीं-
एक सुकून सा है तेरी यादों में
जिसे याद कर आज भी
मेरे होंठों में मुस्कान आ जाती है-
इक अधूरा ख्वाब है तू
टूटा हुआ अरमान है तू
जिसे पाने की ख्वाहिश थी
उस एकतरफ़ा मोहब्बत का
एक खास एहसास है तू-
तुझ संग बिताये वो पल याद आ रहे हैं
भूलना था जिन लम्हों को
न जानें क्यूँ हम उन्हें फिर गुनगुना रहे हैं
जिससे छोड़ दी थी सारी आस
न जानें क्यूँ उनके पास जाने को
हम फिर से बेताब हुए जा रहे हैं-
क्यूँ लेते हो हर पल मेरे इश्क़ की इम्तेहान
हमसे अब ये दूरी और सही नहीं जाती-
तारीखें तो रोज बदला करेंगी
पर अपने इस दिल का क्या करूँ
जो हर पल सिर्फ तेरे लिए धड़कता है-
राहें हमारी भी कभी आसान न थी
ठोकरें हमने भी खाये है किस्मत के
धोखे हमें भी मिले हैं अपनों के
पर हमने कभी कोशिश करना नहीं छोड़ा-