Kratika Sharma   (Krtika Sharma (Gamini))
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✍️लिखना नहीं आता हमें...
बस मन में जो ख्याल आता है...
कागज पर उतर जाता है...♥️
Joined 16 November 2019


✍️लिखना नहीं आता हमें...
बस मन में जो ख्याल आता है...
कागज पर उतर जाता है...♥️
Joined 16 November 2019
23 MAR AT 10:46

"एक पुरुष होना सहज़ नहीं" है...
उस ईश्वर ने अपनी रचना को दो हिस्सों में बनाया,
जिसमें एक हिस्से से स्त्री और दूसरे हिस्से से पुरुष को बनाया...
जिसमे स्त्री के हिस्से घर आया और पुरूष के हिस्से दफ्तर आया.....
[पूरी रचना कैप्शन में पढ़े ]





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23 MAR AT 1:14

हर ताल्लुक मोहब्बत का ही हो ये ज़रूरी नहीं जनाब
कुछ दोस्ती के रिश्ते इश्क से ऊंचा मुकाम रखते हैं...❤️

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22 MAR AT 2:36

हर शांत रहने वाले पुरुष के हिस्से बहुत बोलने वाली स्त्री आनी चाहिए,
और हर शांत रहने वाली स्त्री के हिस्से बहुत बोलने वाला पुरुष,
जिससे कभी एक शांत रहे तो एक बोले,
दोनों का आपसी संतुलन यूं ही बना रहे,
और चेहरे पर मुस्कुराहटे यूं ही सजी रहें...

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11 MAR AT 0:29

ये सुंदरता का मोह कब का त्याग चूके हैं, हम
क्योंकि जिसे पसंद आना था,
उसे पसंद आ चूके हैं, हम...❤️

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6 JAN AT 15:09

जिस तरह तुम से चाहत है हमारी,
उस तरह कोई और चाहे तुम्हें,
तो साहब बेशक भूल जाना हमें...

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19 AUG 2023 AT 23:22

गर किसी कवित्री से प्रेम करोगे,तो वो लिख देगी हर बार बस तुम पर
तुम्हरा प्यार, तुम्हरा गुस्सा,तुम्हारा इंतज़ार सब कुछ समहित कर देगी वो उस कविता पर,
मुसलसल लिखने बैठेगी जब भी,
लिख देगी हर बार बस तुम पर
किसी ना किसी बहाने तुम उसके लेखन में जाहिर हो जाओगे,
कभी तुम्हारी मुसकुराहट,कभी तुम्हारे प्यार,कभी तुम्हारे गुस्से,कभी आपसी तकरार,कभी तुम्हारी बातों को याद कर
वो लिख देगी हर बार बस तुम पर,
वो जब- जब कलम उठाएगी,जमाने से नज़रे चुराते हुए ही सही,
हर बार बस तुम पर ही लिख जायेगी...!!!

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19 JUN 2023 AT 2:56

इतना ही काफी है
इस जमाने की रिवायत में,
अब नहीं बंधना हमें ...

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13 JUN 2023 AT 13:51

ए चांद तूने ,
जानें क्यों तुझे छुपने की इतनी जल्दी थी।
मैं बातों का पिटारा लिए ,
बैठी रही सारी रात,
करती रही तेरा इंतज़ार
तूने मेरी एक ना सुनी
जानें क्यों तुझे छुपने की इतनी जल्दी थी...।।

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12 JUN 2023 AT 1:24

तुम्हारा जिक्र बहुत है,
ए नींद तुम आना जल्दी से
ख्वाबों में ही सही,
अब ये उनसे मिलने का वक्त है...

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24 MAY 2023 AT 0:13

सब्र का इतना इम्तिहान मत लीजिये
की लिहाज बाकी न रह जाये
रिश्ते की परीक्षा भी इतनी न लीजिये
की रिश्ते की जरुरत ही न रह जाये
खामोश खड़े पेड़ के अंदर भी
एक जान बाकी होती है
उसकी आह इतनी भी न लीजिये
की वो फरिश्तों से फरियाद कर बैठे
की आँधियो आओ और मुझे उखाड़ फेंको
जिस दिन उखड गया वो पेड़
उस दिन उस वीराने में तुम छांव ढूँढ़ते रह जाओगे
साथ तुम्हारा छूटेगा ही तुम हर पल बस पछताओगे...

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