Hii,
तुम ही हो, यही न, की ये कोई सपना सा है।
क्योंकि मैंने जिया है इस सपने को, हर दिन, हर पल।
ये सोचते हुए की, बस तुम हो और मैं हूं ।
तुम्हारी आंखें, तुम्हारी जुल्फें और बादलों को चीरती हुई निकलती तुम्हारी वो हसीं।
और मैं बैठा रहूं मौन सा, टकटकी लगाए ,
जैसे किसी ठिठुरते हुए मुसाफिर को धूप सी मिल गई हो।
कुछ बातें भी होगी, पर तुम बोलना और मैं सुनूंगा ।
जैसे तुम्हारे स्वर एक एक करके मेरे दिल पे दस्तक दे रहे हो
और मैं वहा खड़ा उन्हें अंदर आने की इजाजत दे रहा हूं।
तुम्हारे हाथों में हाथ हो मेरा, और आंखों में बस ताकता रहूं,
घड़ी की टिक टिक के सिवाय चारो ओर एकांत की धारा बह रही हो।
और बस तुम हो, मैं हूं, और ये पल जो कभी खत्म न हो।
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सिलवटें भी अब नहीं आती है मेरे बिछावन पे ,
तुम क्या गई तकिए भी चुभने लगे है ।
उन फूलों ने भी मुंह मोड़ लिया अब तो,
और उन काटों ने भी चुभना बंद कर दिया है।
गमले पत्तियां सब मुंह फूला के बैठे है ,
पौधों ने तो पानी तक पीना बंद कर दिया है।
तुम थी तो कोने कोने भी सजीव थे ,
अब तो दरवाजे भी मृत से होने चले है।
तुम थी तो चांद भी रोज आता था आंगन में ,
अब तो सूरज ने भी ग्रहण सा ले लिया है ।
घर की चारदीवारी भी बूढ़ी सी होने लगी है,
और हवाओं ने भी अपना रास्ता बदल सा लिया है।
और इतना भी रूठना अच्छा नहीं है तुम्हारा ,
की तुमने अब रूठना ही छोड़ दिया है।-
आज भी शर्म नहीं आ रही है तुम्हे अगर अपने किए पे ,
तो बस तुम किसी के दया के भी हकदार नहीं रहे अब ।
तुम बस पात्र हो तो घृणा के ही पात्र हो ।
यदि आज भी नहीं समझ आ रही है तुम्हे समय की नजाकत,
तो किसी डॉक्टर के घर में जाके पूछो उनके परिजनों से
की कैसा प्रतीत होता है उन्हें जब महीनों तक ठीक से बात नहीं कर पाते वो ।
यदि इस डोर की नाजुकता को समझना है तो
जाके पूछो उन पुलिस वालों से जो कि घर के चौखट से ही होकर चले आते है
जैसे कोई मछली पानी में तो जाना चाहती हो पर जा नहीं पा रही ।
यदि किसी के दर्द की गहराईयों को आंकना हो,
तो उस पिता के आंखों के अंदर झाकों जिसने अपने पुत्र को अभी मुख्याग्नी दी है ।
यदि भय की उस भयानक मंजर को महसूस करना है
तो उन मजदूरों से पूछो जो पिछले साल को अब भी नही भुला पा रहे ।
यदि निराशाओं की पराकाष्ठा को जाना हो तो
तो उस बेटे से पूछो जिसे अपने बाप के सपने पूरे करने थे पर उसने अपने बाप को ही खो दिया ।
और यदि किसी से तड़प की व्याख्या जाननी हो तो ,
उससे पूछो जिसके चारो तरफ हवा तो है, पर वो सांस तक नहीं ले पा रहा ।
और तुम ये जो इन हत्याओं का पाप अपने सिर लेने में गर्व महसूस कर रहे हो
इन हत्याओं से तुम तो शर्मसार नहीं हो रहे पर मानवता जरूर हो रही है ।
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दिल्लगी का आलम कुछ यूं हुआ , हम अकेले ही दिल लगाते रहे,
तुम सोचती रही की पागल है वो ,तुम हसती रही और हम आंसू बहाते रहे,
दिन ब- दिन किसी सर्कस सी होती जा रही है जिंदगी मेरी
दिल रोने को तो बोहोत कहता है पर तेरे सामने आते ही मुस्कुराते रहे।
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आपके हिस्से में थोड़ी है मेरा इंतज़ार करना
जब इकरार हमने किया था, तो इंतजार भी हम ही करेंगे
कृष्ण को भी तो नहीं मिल पाई थी उनकी राधा
लेकिन प्यार उन्होंने भी किया था और प्यार हम भी करेंगे
तहजीब ,लेहजा हर टुकड़े का ध्यान रखा है मैंने आपके सामने
आपके प्यार में कल भी थे आपके तलबगार आज भी रहेंगे
और बादलों में गर छुप जाए चांद तो अमावस नहीं हो जाती
कलंक ही लग जाए मंजूर है जनाब, पर अपने चौठ के चांद का दीदार तो हम ही करेंगे ।-
उम्मीदों में ही तो गुजारे है दिन मैंने, कोई काम थोड़ी है।
चुपके चुपके ही हुई है आशिकी तुमसे, सरेआम थोड़ी है ।
और कितनी आसानी से कह दिया तुमने की भूल जाओ मुझे,
अरे पगली तुझसे इश्क़ हो गया है, कोई इंतकाम थोड़ी है।
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इस जमाने में सब भूल जाएंगे पर, नहीं भूलेंगे तो बस ,
तेरा वो देख कर हाथ हिलाना और बस आगे बढ़ जाना
नहीं भूलेंगे तो बस ,
तेरा वो आंखों में आंखें डाल के बात करते ही जाना
नहीं भूलेंगे तो बस ,
तेरा उस अपनेपन से मेरे साथ में समय बिताना
नहीं भूलेंगे तो बस,
तेरा मुझपे हक जमाते हुए मेरा टिफिन खा जाना ,
नहीं भूलेंगे तो बस ,
बिना औरों के परवाह किए बस साथ हो जाना ,
नहीं भूलेंगे तो बस ,
घंटों तक तेरा वो एक मैसेज का इंतजार करते जाना ,
नहीं भूलेंगे तो बस ,
तेरे पास होने भर से बस उस कम्पन का हो जाना ,
नहीं भूलेंगे तो बस ,
आज भी ना होते हुए भी तेरे होने का एहसास होना ,
नहीं भूलेंगे तो बस ,
तेरा वो आखरी बार उस किताब का दे जाना ,
नहीं भूलेंगे तो बस ,
तेरे उस आखिरी बार सामने से बस चले जाना ,
अगर कुछ भूल जाना चाहता हूं तो बस,
उस एक गलती का हो जाना ,
जिसने मुझे तुमसे दूर कर दिया, बहुत दूर।
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कुछ अधूरी सी बात अब भी है ,जो दिल को है खरोचती
कब हम मिले बस कह ही दूं ,ये बात बस है सोचती
खोने को अब कुछ भी नहीं ये जानता हूं मै मगर
फिर भी कही अंदर कही एक खौफ सी है नोचती।
तुम चल दिए होके जुदा, मुख मोड़ के जो अब कही
यूं छोर के जो अब कही, दिल तोड़ के जो अब कही
नीलम से इस आकाश में बस ताकता ही रह गया
तुम सुबह सी आईं भी थी, और शाम सी ढल गई कही।
तुम थी जभि तक तब तलक जिंदगी भी थी कि शहद हो
अब तुम नहीं तो कुछ नहीं बस जिंदगी भी बेहद सी हो
आकर इसे जो प्रेम के धागे से जो तुम बांध दो
बस ठहर सा जाऊंगा मै, जैसे कोई सरहद सी हो।
अपने हाथों से जो थाम लो जो हाथ मेरा एक बार
तो प्रेम के उस नाव पे हो जाउंगा मै भी आर पार
पतवार भी तुम ही तो हो और अब धार भी तुम ही तो हो
यदि पार भी ना हो पाऊं अगर, तो डूब जाऊं एक बार।
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ख़ामोश सी जिंदगी तो है , पर खामोशी कही कम सी है ।
अंदर एक दिया भी जल रहा है, पर रौशनी भी गुम सी है।
आंखों के झरोखे से झांक के भी देखा है मैंने चारो तरफ ,
कही कोहरा मेरी तरह, तो कही हल्की हल्की धूप तुम सी है ।
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सवाल तो बहुत थे तुझसे मेरे, पर जवाब ना था
खूबसूरत भी बहुत थी तुम, पर दिल में रुवाब ना था
शायद अकेले ही निकल पड़े थे अनजान रास्ते पर हम,
क्युकी हमारे दिल में तो था, पर तुम्हारे दिल में हमारे लिए ख्वाब ना था ।-