कुछ ऐसा कह दो की ये दिल पत्थर हो जाए,
जां रहे जिंदगी रहे पर जिस्म शजर हो जाए।
तुम जब से गए जिस्त से एक तिरगी सी पसरी है,
गर लौट आओ तुम तो शायद सहर हो जाए।।-
मेरे सोमनाथ मिज़ाज को किसी गजनवी की तलाश है।
हमनें आँखें देखी है उनमें मक्कारी देखी है,
देखी होगी तुमने दुनिया, हमनें दुनियादारी देखी है।
तुम्हें तुम्हारा घर ही जेल सरीखा लगता है,
हमनें वर्षों जेल में रहकर सिर्फ चारदीवारी देखी है।-
खुद भी खुश रहूँ, खुदा भी रहे और खुदाई भी,
तू भी हमसफर रहे और तन्हाई भी।
कामयाबी का ये सूरज इस तरह साथ रहे,
की जितना लंबा मैं रहूँ उतनी ही परछाई भी।
अपनी अपनी जिद के कारण अब झुक नहीं सकते,
तो अदावते भी जारी रखो और आशनाई भी।
हमें वही पसंद थे और उनको मैं भी पसंद था,
इस तरह वो इश्क़ भी करते रहे और बेवफ़ाई भी।
उनसे ख्वाबों में मिलने की बेचैनी मुझे खींच लेती है नींद में अक्सर,
फिर में भूल जाता हूँ लेना चादर भी कंबल भी और चारपाई भी।
जवानी में जब शहर में कदम रखा तो बड़े खुश हुए 'कुमार'
फिर याद आया छुट गया गाँव का घर और आंगनाई भी।-
वो बहुत देर तक मेरे पहलू में रहे,
फिर बहुत देर तक ये बादल बरसता रहा,
एक मुद्दत हुई इस वाकये की,
मुद्दतों तक फिर मैं तरसता रहा।-
उसका दिल दर्द में होगा तो मेरा नाम तो लेगा ही,
वो जा रहा है मुझ से दूर मगर कुछ सामान तो लेगा ही।
मुद्दत हुई उससे मिले मगर इश्क़ बचपन का था,
वो अगर फिर से मिला तो मुझे पहचान तो लेगा ही।
घड़ी भर भी ये तेरी याद मुझे सोने नहीं देती,
अगर ये यूँही चलता रहा तो मेरी जान तो लेगा ही।
कलाकार है वो शख्श मगर उसका पेट ताली से नहीं भरता,
ख़ुद्दारी छोड़ कर भी वो इनाम तो लेगा ही।
ये सियासत की जो तलवारें हैं बड़ी तीखी बड़ी पैनी,
ये मसनद की खातिर कुछ कत्लेआम तो लेगा ही।
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ला आईना दे इधर अपने अक्स को देखना है,
मुंतशिर हो के भी जो खुश है उस शख्स को देखना है।
मुस्कुराता हुआ रहूँगा ये वादा है मेरा ख़ुद से,
उनके रुखसार पे जो झलके उस रश्क को देखना है।
लौट कर अब जो न आयेंगे कभी यहाँ पर
उन्हें ढूँढने के लिए उनके पाँव के नक्श को देखना है।-
तेरा वो बाल्टी भर रंग उड़ेल देना
और मेरा तर ब तर भींग जाना,
वो तेरा हँसते हुए भाग जाना
और मेरा भींगते हुए जीत जाना।-
cement, brick and rod are not required. Rather, a house is formed by mutual love, sympathy and trust of the people living in it.
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तुम गयी तो एक उम्मीद थी कि तुम लौटोगी,
चाहे कुछ भी हो जाये तुम लौटोगी।
जैसे लौट आती है ऋतुयें हर साल अपने नियत समय पर,
लौट आती हैं बिना प्राप्तकर्ता की चिठ्ठियाँ,
लौटता है पुराने जोश के साथ ही गुजरता हुआ मौसम एक बार,
और लौटता है वही पुराना जोर दिया का बुझने से पहले एक बार,
जैसे लौट आती है सुबह की निकली गाड़ियां शाम को अपने स्थान पर ,
लौटती है घड़ी की सुइयाँ अपने पूर्व के स्थान पर हर 12 घंटे में,
मुझे लगा तुम लौट आओगी हर साल शाखों पर लगने वाली कली की तरह।
पर मैं भूल गया कि नहीं लौटता हैं गुजरा वक़्त कभी,
नहीं लौटता है बिता हुआ बचपन और उसकी नादानी,
नहीं लौटती है बीती हुई जवानी और उसकी कहानी, नहीं लौटता है कुछ दोस्तों को दिया गया पैसा,
नहीं कभी नहीं लौटता किसी को कहा गया शब्द अच्छा या बुरा,
जैसे नहीं लौटता देह से निकला प्राण और कमान से निकला तीर,
नहीं लौटता है गुजरा साल कभी भी,
मुझे समझना चाहिए कि कुछ चीजें कभी नहीं लौटती और तुम भी नहीं लौटोगी।
फिर भी तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा,काश की तुम लौट आओ.... !-
हम भी बेदाग दिखते हैं,
चेहरें से आब दिखते है
आँखों से आग दिखते है।
रात का ये अँधेरा भी मेरे
गुनाह छुपा नहीं पाता है,
दिन के उजाले में तो वैसे भी
हम दाग़ दाग़ दिखते है।-