वीराने से उजड़ रहें हैं बाग और कई,
मुझको सता रहा है खौफ और कोई।
किसी दिन बज्म में कोई दस्तार होगी भी क्या,
माथे पर रखकर हाथ देगा दुआ कोई।।-
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Ab aa hi gye ho to apni yatra ko sarthak kijiye or ham... read more
ख्वाहिश-ए-सुकूं इक अरमां से राब्ता बना के रखती है।
आशियाना हर परिंदे की थकन का दम निकाल देती हैं।।
यह तो एक नया ही किस्सा हुआ "वीर" छांव और तूफानी का।
इल्म होते हुए भी खराब मौसिम का,दर दरकिनार कर देती है।।-
दोषी यह रात है नींद खराब नही।
नशा भरा है किसी के बदन में,नशीली शराब नहीं।।
तकलीफ का एहसास तो पहुंचने और रुकने में है।
बाकी रास्ते का तो कोई जवाब नहीं।।
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वर्दियां कब नीलाम हो पाई सौदागरों से बाजारों में,
कुछ देर सांस न लेने से मरा नहीं करते भौम के रक्षक ।
जब जब तलवार रुकी है थककर युद्ध के मैदानों में,
कलम करती रही है शत्रु को घाव अता, निरंतर बेझिजक।
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हमें जो मिल रहा है वैसे तो सब कम ही है,वैसे तो हम तुम्हारी बाहों के तलबगार है,
मगर फिलहाल तुम वस्ल का दौर भी लम्बा रखो, यह भी एक उपहार है।
कोई दौर आए जो तुम्हारा सिर मेरे बाजुओं को दर्द देकर सुकूं दे,
लिहाजन जो हो हाल ही में, वो एक ओहदा है ख्वाहिश देने का,एकतरफा मुहब्बत भी बड़ी खुदखुम्मार है।-
मैं तेरी हर बात अपनी करूं,तू भी मेरी का लिहाज कर।
बगैर रुके कदम चलते हैं तेरी आवाज के पीछे,तू इन कदमों की कद्र कर।।
एक हादसा है यह जिंदगी,हम किसी घर के निकले हुए हैं।
जो फिर यूं ही करते रहे गलतियां, फेंक दिए जायेंगे यहां से भी निकाल कर।।
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कितना दर्द और लिखूं, कितना और संजीदा होऊं अब कहानी में।
कितनी हस्तियां और कितनी बस्तियां उजड़ी इन बोतलों के पानी में।।-
तू ही पारस,तू ही पत्थर,तू अपनी कहानी लिख,तू ही खुद का लेखक बन।
हवा भी भला किसी के साथ चली है, तू ही अपनी नाव,तू ही अपनी पतवार बन।।-
अपनों में ही आप समाये,वहीं तक जिन्दगी है।
जो अपनों से होकर दूर जिया जाए, तो वोह तो फिर कैदगी है।।-
हम जो हमख्वाब हुए,देखो तो जरा रोशन कई आफ़तब हुए।
जरूरतें बन रहे हम आजकल इक दूजे की,वक़्त ही क्या हुआ अभी पहली मुलाकात हुए।।
सजदे हो रहें हैं अपनी गुफ्तगू के दरम्यान,वैसे उसकी दर पर गए तो अरसे हुए हैं।
लोग मिसालें दिये जा रहे हैं अपने खुतूत लिखते वक्त,
टूट जाएंगे कई घर,गर यह ख्वाब एक हक़ीक़ी
ना हुए।।-