Koushik Das   (©koushik_das)
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Joined 10 February 2018


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13 JUN 2023 AT 0:02

कुछ आंसू थे, संगदिल रहते थे, सदाएं कहते थे
कुछ जुगनू थे, चिराग़ से रौशनी लेते, किस्से कहते थे।

मैं कब कितने हिस्सों में टूटा, कहां अपना एक कतरा छूटा
कुछ कागज़ थे, मेरी आपबीती कहते, चीखते रहते थे।।

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2 APR 2023 AT 23:39

रेशम, कस्तूरी
गजरा, सिंदूर
सब..
सजा के लाया था

वो एक " ना " ने
इनका औहदा गिरा दिया।

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27 JUN 2022 AT 23:52

हम ही से हम ना मिले .. तो क्या हम मिले
जब खोया खोया सा तुम्हें हम मिले.. तो क्या तुम मिले ।।

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17 OCT 2021 AT 21:01

निर्मोही मन मेरा सोंचता है एक सवाल
क्या छोट जात के सपने भी होते हैं छुआछूत से भरे ?
या उनके सपनों के परिंदे होते हैं बंदिशों के परे!

स्वप्न में भी वो चप्पल सर पे रखते होंगे, बड़-जात के नज़रों से गुजरते
क्या नींद में भी आत्मसम्मान को मार देते हैं, क़िस्मत को कोसते खसोटते ?
सपनों में ही सही, उस घाट में डुबकी लगा आते होंगे
जहां पुश्तें उनकी सपने में भी जाने से कतराते होंगे..

तन का चोट तो ख़ैर! मन का चोट भी इन सपनों को धुंधला करती होगी
नानी गोद में सोए बच्चों को “राजा वाली” कहानी बतलाने से डरती होंगी

और कुछ अलग तो होगा नहीं !
इन बच्चों के सपने भी, उन बच्चों के सपनों सा नायाब होगा
घृणा और पाखंड से दूर उनका ख़्वाब होगा..

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23 AUG 2021 AT 1:27

हम पिछला भूल चुके..
पर अब दोबारा भूल न पाएँगे।

हमारे भोलेपन का फ़ायदा उठाने वालों
क़यामत तक तुझे रुलाएँगे।।

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15 AUG 2021 AT 0:52

इतिहास गवाह है
के सारे गवाह इतिहास बन गये ।।

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12 AUG 2021 AT 23:33

बड़ा ही सौम्य है, अमृत प्रेम मेरा।
और तुम कश्मीरी केसर सी शुद्ध और रंगीन!

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26 JUL 2021 AT 18:49

अब दोनों पछताते हैं

जो एक वक़्त ख़र्च हो गया
चंद ख़्वाब कमाने में

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17 JUL 2021 AT 19:46

मेरे दिल में भी, सैलाब-ओ-ग़ुबार उठता है।
रह-रह कर ज़हन में ये पुकार उठता है !!

हम नहीं थे क़ाबिल तो नज़रें मिला कर कहते
तुम्हारे यूँ बे-दिली से सवाल उठता है !!

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26 JUN 2021 AT 1:24

यूँ .., आदत नहीं थीं हमें
किसी की आदत होने की …

उन्होंने “हाँ “ कर के
हमारी आदतें बिगाड़ दी..।

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