दुख को दुख कहा जाए,
ये जरूरी नहीं,
चेहरे से हर बात पढ़ी जाए,
ये जरूरी नहीं,
माना कि, बहुत से दीपक जले है मेरे आँगन में,
पर उससे,
मन का अंधेरा छट जाए,
ये जरूरी नहीं ।
(Komal singh)-
कुछ यादें बीते वक़्त में ठहर जाती है,
वक़्त निकल जाता है,
वो रह रह कर याद आती है ।
और कहीं सुकून बिकता होता बाजारों में,
हम भी खरीद लेते, कुछ वादों से,
पर वो भी बेशकीमती हो बैठी,
जो जा टिकी कुछ अधूरे वादों पे।
(Komal singh)-
जो खोया वो याद नहीं रहा,
जो पाया वो संभाल नहीं पा रहा,
इसमें तेरी कोई खता नहीं , मेरे नसीब,
मैं इंसान हूं, ये जान नहीं पा रहा,
थम जाएंगी ये सांसे भी, वो दिन दूर नहीं,
बस मलाल रहा, अब भी खुद को पहचान नहीं पा रहा,
सुकून विचरण करता रहा, मेरे करीब,
मैं ही आवारा था ,जो ढूँढता रहा, अनोखा नसीब।
(कोमल सिंह)
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थोड़ा और रुकना था मुझे,
आईना अक्स दिखाता है,केवल
अपने मुकद्दर से मिलना था मुझे,
हर वक़्त रोया जाए,
ये जरूरी नहीं,
इसलिए अब दर्द से थोड़ा दूर चलना था मुझे।-
कहां से लाए सुकून के पल,
ये बाजार में भी तो, नहीं मिलता
हर मुस्कराता चेहरा,
अपने राज यूँ ही नहीं कहता,
खंगालने पड़ते हैं,
बहुत से किस्से,
क्योंकि हर दर्द का इलाज,
यूँ ही सरेआम नहीं बिकता।
(कोमल सिंह)-
अब क्या इसके भी है, तोड़े कोई ज़ज्बात,
हर कोई मुझसे ही क्यूँ रूठा ,
यकीनन, अंदर मेरे भी कुछ टूटा,
पर वो इन नजरों से, कहा समझ आया,
जिनको कुछ अनचाही सीमाओं से ,तुम सबने बाँधा,
अब क्या इस रात से भी, बात की जाए,
खफा हुई क्यूँ इसकी पड़ताल की जाए।
(Komal singh)
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एक भाव ही है, जो कटते नहीं किसी कटार से,
बस कटते है, तो कुछ अनकहे अल्फाज़ से।-
इतना भी क्यूँ रो रहा?
हर वक़्त किस को कोस रहा?
इतनी अमीरी किस काम की
जब फकीरों से ज्यादा फ़कीर दिख रहा,
कुछ सीख उस फ़कीर से,
जो एक वक़्त खा कर भी,
चैन से सो रहा,
हक़ीक़त समझ अपने जीवन की,
ये तकलीफ़ अकेले तेरे दर ही नहीं आयी,
बस दायरा सिमट गया तेरे सुकून का ,
जब गैरों पर टिका ,तेरी खुशियो का आसमान,
तो खुद के आंगन में कैसे सजेगा कोई अरमान।
(कोमल सिंह)-
हक़ीक़त में न सही,
पर ख्वाब में तो रह ,
तू खुशी का बुलबुला नहीं,
जो छूते ही फ़ूट जाय,
तू ग़म का वो बादल है,
जो वक़्त-वक़्त पर बह,
इतना अंधेरा अच्छा नहीं,
आंखे खोल,
चिरागों के शहर में है तू,
तेरे दर्द का जश्न हो रहा,
कुछ तो, तू भी कह।
(कोमल सिंह)
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बरसों तक यूँ ही भ्रम में, जीता रहा, की,
भौरों के कुंजन को भी, तेरे पैरों की पायल समझता रहा।-