Komal Mishra   (Komal Mishra ✍️)
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Joined 30 June 2020


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Joined 30 June 2020
24 JAN AT 20:36

कोई कविता सुनाऊं या,
कोई कहानी बताऊं,
बोलो आज क्या सुनाऊं?

राम का वनवास सुनाऊं,
या कृष्ण के रास सुनाऊं,
बोलो आज क्या सुनाऊं?

सीता के त्याग बताऊं,
या राधा सा प्रेम सिखाऊं।
बोलो आज क्या बताऊं?

केकई के षड़यंत्र बताऊं,
या सकुनी के प्रपंच बताऊं,
बोलो आज क्या सुनाऊं?

रामायण का सार सुनाऊं,
या महाभारत के विस्तार बताऊं,
बोलो आज क्या सुनाऊं?

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29 NOV 2023 AT 22:15

कुछ ठीक नही हैं हाल मेरे,
हैं उलझे हुए सवाल मेरे।

तुम अपना बना लो तो,
शायद संभल भी जाऊँ।

वरना मौत से मिलने,
के हैं ख़्याल मेरे।

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29 OCT 2023 AT 19:56

“यादें (पापा की)"
पापा बहुत याद आती है आपकी,
आपकी डांट, आपकी ज़िद्द, आपकी बातें
और आपकी कहानियाँ।
मुझे पता है मैं शुरू से आपकी लाड़ली थी,
पर बीते कुछ दिनों में,‌ मुझे एहसास हुआ कि,
आप मुझसे बहुत से भी बहुत ज़्यादा प्यार करते हो।
सुबह आँख तो आपके डांट से ही खुलती थी,
और डांट सुनते ही मैं गुस्से से उछलती थी।
फिर आँसू ले कर आपके पास आती,
और फिर दुबारा आपसे डांट सुन कर आखिर उठ ही जाती।
सुबह के नौ बजते ही आप नास्ते के लिए तहलका मचा देते थे।
और गलती से अगर मैं बोल दूँ मुझे भूख नहीं है तो,
बच्चों की तरह मुझे ज़िद्द करके खिलाते थे।
पता नहीं कितना कम वक्त बिता पाऊँगी आपके साथ सोच
कर रोती थी,
फिर खाना खा लो बेटा, ठीक से जाना बेटा, बाय बेटा,
आपका ये बेटा शब्द सुनकर बहुत ख़ुश भी होती थी।
जितने संघर्ष किए थे आपने जब वो मुझे सुनाए,
तो मैंने भी मजाक में कहा था ना,
पापा क्यों ना इसे हम किताब में छपवाएँ?
पर आपने वो कहानी पूरी सुनाई ही नहीं।
आखिर कैसे पाई सफलता
आपने पूरी बात तो बताई ही नहीं,
कोई नहीं मैं फिर भी आपके लिए लिखूँगी एक किताब
जिसमें आपके हिस्से खुशियाँ होंगी बेहिसाब
और दर्द होंगे एक-आध।
पापा आप तो चले गए,
पर आपकी बातें रोज़ होती हैं।
पूरे दिन याद आती है आपकी
फिर हर रात मेरी ये आँखें रोती हैं।

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24 SEP 2023 AT 20:59

“एक कहानी-ज़िम्मेदारियाँ"
बचपन से लड़ाइयाँ देख जो बड़ी हुई थी,
वो बच्ची अब काफ़ी सहमी और ड़री हुई थी।
अपनी परेशानियाँ किसी से बता नहीं पाती थी,
और इस अकेलेपन से वो दूर भी होना चाहती थी।
इसलिए पढ़ने में वो मन लगाने लगी थी,
अपनी मेहनत से स्कूल में फर्स्ट आने लगी थी।
मिला कोई ऐसा जो उसे काफ़ी अपना लगने लगा था,
जीवन एक प्यारा सा सपना लगने लगा था।
दिन भर स्कूल में नैन मिलने लगे थे,
यहीं से प्यार के दो फूल खिलने लगे थे।
पहले बातें, फिर मुलाकातें होने लगी थी,
सुध-बुध छोड़ वो लड़की बस प्यार में खोने लगी थी।
जात है अलग और सख्त हैं माता-पिता उसके वो जानती थी,
पर प्यार अंधा होता है ये भी तो मानती थी।
आख़िर कुछ सालों में बात घर तक आई,
वो लड़की जो डांट से डरती थी,
ना जाने उस लड़के के लिए उसने कितनी मार खाई।
स्कूल छूटा और छूट गई पढ़ाई,
शहर की लड़की अब गाँव चली आई।

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22 SEP 2023 AT 17:54

“कुछ बातें, कुछ यादें"
एक ही बात कितनी बार बताऊँ तुझे?
क्या वो पल फिर से याद दिलाऊँ तुझे?
मैं बस तेरी, तू सिर्फ़ मेरा हुआ करता था,
याद है, तू मुझे कितना प्यार करता था?
दिन-रात बस कॉल में हमारी बात हुआ करती थी,
छोटी सी लड़ाई में भी मुलाक़ात हुआ करती थी।
लाखों गलतियों के बाद भी मैंने तुझे माफ़ किया,
तेरे झूठे आँसुओं पर भी बार-बार विश्वास किया।
अब तो मिलकर प्यार से समझाता ही नहीं,
आखिर तू चाहता क्या है बताता भी नहीं।
बात भी नहीं करता और तू मुझसे दूर भी नहीं होता, अगर,
तुझे प्यार ना करता तो शायद मैं इतना मजबूर नहीं होता।
तेरी ख़ुशी हो जिसमें वो सबकुछ किया मैंने,
पता है, तेरे इश्क़ में काफ़ी विष भी पिया मैंने।
अब तू ख़ुश है तो मैं और क्या कहूँ?
तू तो हमेशा से चाहता ही था न मैं दर्द सहूँ?
आना किसी रोज़ फ़ुरसत से मेरे पास,
आख़री मुलाक़ात और कुछ पल बात करेंगे।
जो हो इजाज़त तो तेरे संग एक तस्वीर लेंगे,
और आजीवन तुम्हें अपने प्रेमी के रूप में याद करेंगे।

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21 SEP 2023 AT 16:30

जो तुम्हें हो पसंद,
बस वही बात करते हैं।
जहां तुम्हे हो पसंद,
आओ वहीं मुलाकात करते हैं।
बड़ी परेशानियां थीं ना तुम्हें मुझसे?
आज उन्हीं परेशानियों की तहकीकात करते हैं।
अपनी बातों से, अपने ख्यालों से,
आज तुम्हें हम आज़ाद करते हैं।
और क्या कहें तबाह तो पहले भी थे हम
अब अपनी खुशियों से तुम्हें आबाद करके
चलो खुद को थोड़ा और बरबाद करते हैं।

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13 AUG 2023 AT 23:47

टूटा अपनों का दिल,
तो सौगात मुझपे आई है।
जो गिरी बिजली अपनों पर,
तो बात मुझपे आई है।
पहाड़ों वाली गर कोई रात हो,
तो वो रात मुझपे आई है।
सुखी हयात सबके हिस्से,
दर्द-ए-हालात मुझ पे आई है।
जो गया कोई कफ़न में,
तो वो सवालात भी मुझपे आई है।
अब किन-किन बातों से रूठूँ मैं?
यहाँ तो हर बात मुझपे आई है।

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4 MAY 2023 AT 0:22

Papa Bahut Yaad aati hai aapki,
Aapke daant, aapki zidd, aapki baatein
or aapki kahaniyan.....
I know mai shuru se aapki laadli thi,
par bite hue kuch dino me,
mujhe ehsaas hua ki aap mujhse
kitna jyda pyaar karte ho..
Subha aankh to,
aapke daant se hi khulti thi.
Or daant sunte hi,
mai gusse se uchlti thi.
Phir aansu le kar aapke ps aati,
or dubra apse daant sun kar aakhir uth hi jaati.
Subha ke 9 bajte hi aap naste ke liye tahalka macha dete the.
Or by chance mai bol dun,
mujhe bhuk nahi hai to,
Bachon ki tarah,
mujhe zidd karke khilate the.
Pata nahi kitna kam waqt bita paungi
aapke saath soch kar roti thi,
Phir bye Beta, Khana kha lo Beta, thik se jana Beta,
Aapka ye Beta Shabd sunkar bahut khush bhi hoti thi.
jitne struggle kiye the apne wo jb sunae,
to maine bhi majak me kaha
papa kyun na ise hm kitab me chapwae?
Par apne kahani Puri sunai hi nhi.
Akhir kaise paya success
apne puri baat to btai hi nhi,
Koi nahi mai phir bhi aapke liye likhungi ek kitaab
Usme khushiyan hongi behisaab
or dard honge ek-aad.
Magar pta hai Papa aap to chale gaye,
Par aapki baatein roj hoti hain.
Pure din yaad aati hai aapki
Phir har raat ye aankhein roti hain.

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2 APR 2023 AT 0:21

पापा,
होली बीत गई
बीत गई रामनवमी भी
और आगे ना जाने कितने त्योहार
आपके बिना ही बित जाएंगे,
हां होगा कुछ नहीं
बस आप थोड़े से,
नहीं नही थोड़े से नही
थोड़े ज्यादा ही याद आएंगे,
आस पास सब तो होंगे ही
पर अब इन त्योहारों में हम आपको नही देख पाएंगे
यहां मत जाओ वहां मत जाओ
उफ्फ, आपके ये रोक टोक
सोचा नही था इसे याद कर भी हम रो जाएंगे।

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29 JAN 2023 AT 22:27

ख्वाबों में, ख्वाबों ने, ख्वाबों की बात क्या कही,
ये आंखें तो उन ख्वाबों में ही खो गई।

दिल ने, दिल से, दिल की बात क्या कही,
ये आखें तो उन्हें सुनते ही रो गई।

नींदों ने, नींदों से, चैन की नींद क्या मांगी,
ये आंखें तो हमेशा के लिए ही सो गई।

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