Komal Mehta   (मेरी लेखनी ✍️)
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Joined 7 April 2024


Joined 7 April 2024
25 APR AT 0:00

वो कहती है बदल गया हूं मैं
कहीं अटक गया हूं किसी जाल में
कुछ भूल गया हूं उसकी कही,कुछ मानने को तैयार नहीं मैं!!
मैंने कहा प्रिय,
अरे, बदला नहीं हूं मैं
अब कुछ संभला सा हूं
कही अटका नही मैं, कहीं से निकला हूं
और भूलने की बात ना करो मुझसे ,
मुझे याद है तू भी और तेरी बातें भी
अब हीं तो बहुत कुछ जाना हूं मैं
बदला नहीं मैं ,अब कुछ संभला सा हूं !

तेरे किए हर वादे याद है
तेरी बातें अब भी मेरे साथ है
हां मुझे अब उसपे यकीन नहीं
अरे बदला नहीं मैं, अब कुछ संभला सा हूं!!

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21 APR AT 0:08

इश्क़ की बात तुम न हीं करो तो अच्छा है !
ये नाज़ुक धागा है,जो अभी कच्चा है
बहुत बेरहमी से तोड़ा था तुमने इसे ,
अब मिलने की शिरकत ना हीं करो तो अच्छा है !
और दिखाओ वही जो तुम हो ,
मुखौटे के पीछे का ज़िक्र तुम्हारा सच्चा है!

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20 APR AT 0:52

जो बातें मेरी नहीं है,वो क्यूं बताया करते हो
हर वक्त, हर लफ्ज़ में तुम क्यूं गाया करते हो
जानती हूं, खफा हो मुझसे महज़ कुछ पल के लिए हीं
फिर दुनिया के सामने मुझे क्यूं बुरा बनाया करते हो!!

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9 APR AT 22:03

तुम कहो तो सुबह को शाम लिख दूं,
ये जिंदगी तुम्हारे नाम लिख दूं।
जिक्र की बात छोड़ो अब,
कहो तो तुम्हारे नाम किताब लिख दूं!
जो इश्क निभाई तुमने शिद्दत से तो,
तुम्हारे नाम इश्क _ए _शहंशाह का खिताब लिख दूं!!

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9 APR AT 20:22

जो समय मिले तो, कभी ढूंढ लेना मुझे
बहती दरिया में कहीं मिल जाऊंगा मैं
फ़िदरत बदलने की नहीं, निभाने की है मेरी,
मुद्दतो बाद भी वैसा हीं मिल जाऊंगा मैं!

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9 APR AT 1:07

ठहरने को तो मैं अब भी ठहर जाऊं
अब भी कुछ बाकी है क्या?
मेरे टूटने की खबर काफ़ी नहीं
कहो, मौत बाकी है क्या!

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7 APR AT 21:59

अब बात कुछ ऐसी है कि,
मैं उसके जिक्र में भी कहीं नहीं,
और वो मेरी लफ्ज़ लफ्ज़ में रहती है!
भूल तो मैं भी जाऊं उसे,
कमबख्त रक्त की तरह ,
मेरी रग रग में बहती है!

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7 APR AT 13:17

कुछ अनकही कुछ अनसुनी सी बातें तुम्हें बतानी है
तुम्हें तुमसे भी ज्यादा मुझे जाननी है
बेशक तुम दूर हो मुझसे
इस बात का गिला नहीं मुझे
गर सुनो तो तुम्हें हर कुछ बतानी है

बनारसी साड़ी में लिपटी हुई
एक कहानी बतानी है
अस्सी से मणिकर्णिका तक का सफर
तुम्हारे साथ बितानी है
बेशक औरों की चाह नहीं मुझे
तेरा हाथ थाम मुझे तुम तक हीं जानी है

तेरे साथ मुझे जिंदगी ऐसे बितानी है
जो शुरू और खत्म तुम पर हीं हो जानी है
चाहे बात जो भी हो वो तेरे साथ हो
सात जन्म की बात हो या बनारस की घाट हो

ये बातें महज़ बातें नहीं मेरे एहसासों की वाणी है
जरा गौर से सुनो इसे जिसे तुम्हें हीं संभालनी है
गर सुनो तो, तुम्हें बहुत कुछ बतानी है ll

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