हमसे ज्यादा 'ये आखें' जानती है जो उस पल को अपने अंदर समेट लेती है लेकिन फिर भी हमे कहाँ जताती है और फिर उसे याद करके हस्ते हस्ते 'ये आखें' यू ही भर आती है
हमारा इस कदर अपनी परछाई को यू ताकना मानो परछाई कह रही हो हमसे "तुझसे अच्छा तो वो हमारी खूबसूरती को पहचानते हैं जिन्हे रोशनी मे डूबे हमारे चेहरे से नही बल्कि हमारे अंदर के "अंधेरे" मे लिपटे खालीपन को निहारने मे ज़्यादा दिलचस्पी है"