Komal Jha   (~komal jha)
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Joined 10 March 2021


Joined 10 March 2021
5 FEB 2022 AT 22:36

गिले बहुत से है,
लेकिन तुमसे नहीं खुद से है।
बाते बहुत सी है,
लेकिन खुद से नहीं सब तुमसे है।
यादें बहुत सी है,
तुमसे नही "हम-से" है।— % &

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28 JAN 2022 AT 22:36

इस लाल भंगिमा का अनुमान क्या लगाया जाए
है ये तेरी मुस्कान का असर या इसे तेरी लाली का कमाल समझा जाए— % &

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23 JAN 2022 AT 22:55

उसे याद करने मे
उस पर
बीताए गए वक्त
और बहाए गए आसुओं
से पता लगती है

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23 JAN 2022 AT 22:49

हमसे ज्यादा 'ये आखें' जानती है
जो उस पल को अपने अंदर समेट लेती है
लेकिन फिर भी हमे कहाँ जताती है
और फिर उसे याद करके हस्ते हस्ते
'ये आखें' यू ही भर आती है

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21 JAN 2022 AT 23:47

हमारी परछाई मौज मना रही है
मानो चुपके से हमे ये जता रही है
"कि तुम ना सही हमारी कदर करने के लिए
हमारा "चांद" आज हमारे साथ है"

शायद ये उन दोनों की मोहब्बत का आगाज़ है

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21 JAN 2022 AT 23:34

हमारा इस कदर अपनी परछाई को यू ताकना
मानो परछाई कह रही हो हमसे
"तुझसे अच्छा तो वो हमारी खूबसूरती को पहचानते हैं
जिन्हे रोशनी मे डूबे हमारे चेहरे से नही
बल्कि
हमारे अंदर के "अंधेरे" मे लिपटे खालीपन को निहारने मे ज़्यादा दिलचस्पी है"

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20 JAN 2022 AT 23:47

The confidence that I get from the core

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20 JAN 2022 AT 23:41

क्या कर बैठु
कब हां कब ना कर बैठु
कहीं उलझन भरी गाठो को सुलझाने मे ही
जिंदगी खो ना बैठु

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20 JAN 2022 AT 23:24

अब यू सता रहा है
तेरे होने ना होने का फर्क समझा रहा है
कुछ की होगी वक्त ने गुस्ताखी तुझसे
तभी तू खुद से दूर होता जा रहा है

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20 JAN 2022 AT 23:12

अब कहां लगता है
उन गलियों मे जाने का खुद से मन करता है
हो गई है इस कदर इन अंधेरों से दोस्ती
अब तो यहां घर सा लगता है

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