komal Bamniya   (कोमल......✒)
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Joined 7 March 2018


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26 APR AT 14:39

"कलयुग के कृष्ण"

अगर कृष्ण ने कलयुग में जन्म लिया होता,
तो वह कभी अर्जुन को शस्त्र उठाने को नहीं कहते।

वह कहते कि हे अर्जुन !
तुम अपने शस्त्र रख दो,
इस संसार को शस्त्रों की नहीं, प्रेम की आवश्यकता है ।
तुम एक ऐसा योद्धा बनो जो बुराइयों से डरे नहीं,
बुराइयों को नष्ट करें।
कलयुग में तुम्हारा धर्म युद्ध करना नहीं,प्रेम करना है, प्रेम को प्रसारित करो।

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23 APR AT 22:46

हे विशुद्ध प्रेम की अनंत लहर,
हे शून्यता का अनंत सागर।

आज तुम्हारे पर्व पर,
मैं मांग रही तुमसे ये वर।

नाश हो ! नाश हो !
मेरे अस्तित्व का विध्वंशगान हो ।

छीन लो सबकुछ मुझसे ; हे अघोर ।
मेरी श्रद्धा, मेरा विश्वास भी,
मेरे पुण्य और पाप भी,
मेरे सुख और संताप भी ।

'मैं' मैं भी ना रहूं ....
छीन लो मुझसे ये पहचान भी ।।

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19 APR AT 11:09

धर्म कोई सत्ता नहीं ; जिस पर आपका अधिकार हो।
यह एक सामाजिक संस्था है;जिसके आप सदस्य हो सकते हैं ।।

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28 MAR AT 21:19

की कैसा दौर यह है,
जहां सरल होना कठिन लगता है।

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29 JAN AT 19:44

'आत्मज्ञान'

आलाप सुनो तुम पवनों का ,
सुनो गर्जना बादल की ,
आकाश भी अब चीख रहा ,
बंजर हुई है धरती भी ।।

है सब सुनने को व्याकुल खड़े ,
छेड़ दो तुम नाद क्रांति की ।।

अज्ञान का अंधकार हटाकर ,
चेतन करो तुम चित्त स्वयं का।।
आत्मज्ञान के स्वरों से ,
नव-सृजन करो तुम सृष्टि का ।।

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21 JAN AT 22:17


"परम"

तुम द्वैत कहो,अद्वैत कहो या कहो द्वैताद्वेत ,
मौजूद एक ही है यहां, नाम-रूप में जो है अनेक ।

'अ' से उत्पन्न आकार वही है,है ओमकार का निराकार वही,
'उ' से उठता तेज वही है, है प्रज्ञा में विलीन वही ।

अर्थ से परे परमार्थ वही है,
है जगत-जीवन का सार वही ।।

है शून्य-सनातन-आत्मा स्वरूप वही,
है आत्मज्ञान वही।।

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21 JAN AT 13:20

"नारी "

तुम मधुर नाद हो मृदंग की,
तुम सृजन-ताल हो नृत्य की ।

नारी तुम हो उमंग-उत्साह की,
तुम ही हो शोभा पर्वौं की।

प्रलय के बाद कि तुम वो लय हो,
जिससे होता नवसृजन सृष्टि का ।

नारी तुम तो शक्ति हो,
शिव धरते है पहचान तुम्ही से।

नारी तुम कल्याणी हो,
जीवन की तुम ही जननी हो।

कोई त्याग नहीं तुमसे ऊंचा,
तुम तो परिभाषा हो समर्पण की।।

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20 JAN AT 20:23

एक पल में एक उम्र-सा जी जाता मुझमें ,
उसे सोचती हूं, तो एक सब्र-सा आ जाता मुझमें ।।

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14 JAN AT 21:43

बिना सिद्धार्थ को जाने, बुद्ध को नहीं जाना जा सकता।
बुद्ध होने से ज्यादा कठिन है ,सिद्धार्थ होना ।

बहुत कठिन है, अपना सर्वस्व त्यागना,
कठिन है वृद्ध पिता को यूं छोड़ चले जाना,
कठिन है सोते हुए बच्चे और पत्नी को छोड़ चले जाना।
कठिन है स्वयं को खोजने के लिए, स्वयं को नष्ट कर देना।
कठिन है सिद्धार्थ की पीड़ा को सहन कर पाना।
कठिन है सिद्धार्थ सा धैर्य रख पाना।
बहुत कठिन है सिद्धार्थ हो जाना।


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14 JAN AT 0:49

स्वतंत्रता की भी अति हो, तो वह बंधन बन जाती है ।

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