यह पितृसत्तात्मक समाज महावीर की नग्नता को सहजता से स्वीकार कर सकता है ; लेकिन इसे मल्लिनाथ की नग्नता को स्वीकार करने के लिए उनका लिंग परिवर्तित करना पड़ता है।
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शून्य से शून्यता की ओर ....
इच्छाएं सारी धूल हो रही,
मुट्ठी से मेरी ; रेत-सी फिसल रही ।।
एक-सी सारी दिशाएं हो रही,
रास्तों को ये खुद में खो रही ।।
हवाएं तलवार-सी बदन काट रही,
मरुस्थल-सी यह जिंदगी हो रही ।।-
If we are living in the post-modernist era, which is characterized by incredulity towards meta-narratives of faith,
then why are we returning to a traditional mindset where an individual's perspective is suppressed, despite our skepticism about grand narratives and our desire for freedom of thought?-
' विकलांगता'
सशक्त समाज में अगर आप अशक्त महसूस करते हैं ;
तो दुर्भाग्य से आपका समाज विकलांग है ।
आध्यात्मिक संस्कृति होने के बावजूद भी ;
अगर जातिवाद चरम पर है; तो वह समाज विकलांग है ।
जहां का धर्म सनातनता लिए हुए हैं ;
अगर वहां भी धार्मिक मुद्दों पर राजनीति होती है ;
तो वह समाज विकलांग है ।
विकलांगता केवल शारीरिक अपाहिजता ही नहीं ,
मानसिक गुलामी को भी प्रदर्शित करती है ।।-
कोई हक़ीक़त से वाक़िफ नहीं है किसी की,
लोगों ने मुखोटे कई लगा रखे हैं ।
हर दिन ये चेहरा नया होता है,
हर दिन एक इंसान में एक इंसान नया होता है ।।-
सब कुछ कहा नहीं जा सकता,
सब कुछ समझा नहीं जा सकता,
जीवन की हर परिस्थिति में मौन सदा सर्वश्रेष्ठ ही रहा है ।।
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'प्रेम'
कहाँ भिन्न है मीरा से कृष्ण ?
प्रेम तो'एक'बनाता है ,
सब भजतें हैं कृष्ण-कृष्ण,
मैं मीरा-मीरा गाती हूँ ।।
प्रेम की ना जात कोई,
प्रेम की ना पहचान कोई,
जहां पिया का नाम सुनुं ,
मैं वहां उनमें खो जाती हूँ ।।
प्रेम में पाया नहीं जाता ,
सबकुछ खोया जाता है ।
की कहाँ कुछ रहता है ,मेरा मुझमें ,
कृष्ण को भजते, मैं भी तो 'कृष्ण' हो जाती हूँ ।।-