komal Bamniya   (कोमल......✒)
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सरल, सहज,सकारात्मक ।

शून्य से शून्यता की ओर ....
Joined 7 March 2018


सरल, सहज,सकारात्मक ।

शून्य से शून्यता की ओर ....
Joined 7 March 2018
24 JUL AT 13:31

यह पितृसत्तात्मक समाज महावीर की नग्नता को सहजता से स्वीकार कर सकता है ; लेकिन इसे मल्लिनाथ की नग्नता को स्वीकार करने के लिए उनका लिंग परिवर्तित करना पड़ता है।

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23 JUL AT 19:42

इच्छाएं सारी धूल हो रही,
मुट्ठी से मेरी ; रेत-सी फिसल रही ।।

एक-सी सारी दिशाएं हो रही,
रास्तों को ये खुद में खो रही ।।

हवाएं तलवार-सी बदन काट रही,
मरुस्थल-सी यह जिंदगी हो रही ।।

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23 JUL AT 19:27

समाज

अपराध

समाजीकरण

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2 MAY AT 12:11

If we are living in the post-modernist era, which is characterized by incredulity towards meta-narratives of faith,
then why are we returning to a traditional mindset where an individual's perspective is suppressed, despite our skepticism about grand narratives and our desire for freedom of thought?

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30 SEP 2024 AT 21:19

' विकलांगता'

सशक्त समाज में अगर आप अशक्त महसूस करते हैं ;
तो दुर्भाग्य से आपका समाज विकलांग है ।

आध्यात्मिक संस्कृति होने के बावजूद भी ;
अगर जातिवाद चरम पर है; तो वह समाज विकलांग है ।

जहां का धर्म सनातनता लिए हुए हैं ;
अगर वहां भी धार्मिक मुद्दों पर राजनीति होती है ;
तो वह समाज विकलांग है ।

विकलांगता केवल शारीरिक अपाहिजता ही नहीं ,
मानसिक गुलामी को भी प्रदर्शित करती है ।।

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23 AUG 2024 AT 11:23

कोई हक़ीक़त से वाक़िफ नहीं है किसी की,
लोगों ने मुखोटे कई लगा रखे हैं ।
हर दिन ये चेहरा नया होता है,
हर दिन एक इंसान में एक इंसान नया होता है ।।

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15 AUG 2024 AT 10:30

"आजादी क्या है"

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14 AUG 2024 AT 15:37

सब कुछ कहा नहीं जा सकता, 
सब कुछ समझा नहीं जा सकता,
 जीवन की हर परिस्थिति में मौन सदा सर्वश्रेष्ठ ही रहा है ।।

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13 AUG 2024 AT 9:54

"भारत "

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21 JUN 2024 AT 12:23

'प्रेम'

कहाँ भिन्न है मीरा से कृष्ण ?
प्रेम तो'एक'बनाता है ,
सब भजतें हैं कृष्ण-कृष्ण,
मैं मीरा-मीरा गाती हूँ ।।

प्रेम की ना जात कोई,
प्रेम की ना पहचान कोई,
जहां पिया का नाम सुनुं ,
मैं वहां उनमें खो जाती हूँ ।।

प्रेम में पाया नहीं जाता ,
सबकुछ खोया जाता है ।
की कहाँ कुछ रहता है ,मेरा मुझमें ,
कृष्ण को भजते, मैं भी तो 'कृष्ण' हो जाती हूँ ।।

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