नियति की कलम से मुलाकात लिखी थी,
अचानक उस रोज मे तुमसे मिली नही थी,
बिछडना हमारा शायद किस्मत होती
पर तु कभी तकदीर को मानती नही थी,
हररोज पास रहते थे हम दोनो मगर
हकिकत ये थी की तु मेरे साथ नही थी,
ख्वाब मेरे तुझसे जुडे हुए थे तब भी पर
कभी मे उसे देखने चैन से सोई नही थी,
मेरी मंज़िल तो मिलेगी मुझे मगर
गम इस बात का है की
मेरी मंज़िल का रास्ता तुं बनी नहीं थी,
सोचती थी चैन से सो जाऊ आँचलमे तेरे
पर अफ़सोस
मै उस लायक कभी तुझे लगी नहीं थी।
P. K...- Dobrener ni duniya
29 APR 2019 AT 23:21