कन्नौजिया जी   (प्रवीण कुमार कन्नौजिया)
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Joined 2 January 2022


Joined 2 January 2022

कुछ रिश्ते बनते पैसों से।
कुछ बनते हैं व्यवहार से।।
स्वार्थ सिद्ध ना करते वो रिश्ते।
जो बनते हैं प्यार से।।

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महंगी दुनिया महंगे रिश्ते।
व्यवहार ही है जो सस्ता है।।
मुस्कान बनो हर चेहरे की।
हर दिल में रब बसता है।।

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संविधान को लिखने वाले।
तूने कभी ना जाना।।
कुछ मूरख अज्ञानी तुझको।
आज भी देते ताना।।
बाबा तूने संविधान में।
सबकी लिखी भलाई।।
कुछ लोगों के नहीं समझ ये।
बात अभी तक आई।।
कितना सब कुछ झेला जीवन में।
फिर भी अधिकार दिलाया।।
है नादान मनुज वो जो ये।
बात समझ ना पाया।।
संघर्षों में बचपन बीता।
दुःख में कटी जवानी।।
फिर भी मेरे भीमराव ने।
हार कभी ना मानी।।

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किसी को देख कर यूं सामने।
अनदेखा कर जाना।।
बड़ा मुश्किल है दुनिया में।
यूं जीते जी ही मर जाना।।

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बर्बाद करने वाले मुझको।
इस जहाँ से उस जहाँ तक हैं।।
चल देखते हैं तेरे भी ज़ुल्म की।
इंतेहा कहाँ तक है।।

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एक अदद नौकरी कितना मायने रखती है जिंदगी में।
नौकरी ना हो तो लोग दरकिनार कर देते हैं।।

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किसी की ख़ुशियों में शामिल।
मैं किसी के ग़म का हिस्सा हूँ।।
जिसे लोग सुनाएं अपने ढंग से।
मैं ऐसा इक किस्सा हूँ।।

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हालात कभी अपने नहीं होते.....
और जो आसानी से पूरे हो जाएं.....
वो सपने नहीं होते.....

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कुछ ख़ुशियाँ कुछ ग़म।
कुछ ज़्यादा कुछ कम।।

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जेबें ख़ाली हैं फिर भी दिल बड़ा रखते हैं।
हम वो हैं जो परिस्थितियों से भी मुकाबला कड़ा रखते हैं।।

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