कमल यशवंत सिन्हा   (Rang Tilasmani 🐥)
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माचिस की ज़रूरत नहीं है मुझे, मैं अपनी जेब में कलम रखता हूँ। ©Tilasmani_KYS
Joined 12 October 2018


माचिस की ज़रूरत नहीं है मुझे, मैं अपनी जेब में कलम रखता हूँ। ©Tilasmani_KYS
Joined 12 October 2018

इश्क़ में जिसके तिलस्मानी बर्बाद है मौला
उसको हर्फ़ हर्फ़ तिलस्मानी याद है मौला

उसकी आंखे उसका चेहरा नूर का दरिया है
जिसने ना देखा उसको वो नाशाद है मौला

वो कहती जाना तुम बहुत दूर तक जाना
मुझ राहगीर का वो इंकलाब है मौला

उन आंखों में कई कहकशां भी है शामिल
वो महताब है वो ही आफताब है मौला

उसने एक दफा मुझको नज़र भर देखा था
मैं अब तक डूबा हूं वो एक ऐसा सैलाब है मौला

सबकी एक ही नसीहत माजी को रुख़सत कर तिलस्मानी
कैसे जाने दूं मैं उसको वो मेरा एकलौता ख्वाब है मौला

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Myntra के wishlist में रखी हुई साड़ी
मेरा उपहास सा करती हुई मुझसे पूछती है
क्या वो अब तक नहीं लौटी ?
मैंने तो सुना है कि वो लौट आयी है
और आसपास ही कही रहती है
इतने करीब...कि तुम खुद भी उससे मिलकर
उसे भेंट कर सकते हो मुझको
क्या तुम खुद ही उससे मिलना नहीं चाहते...???
इश्श्श! कहीं ऐसा तो नहीं...
कि वो लौटी मगर तुम तक नहीं लौटी!!!
बताओ ना सच सच...???
आखिर मैं कब तक तुम्हारे wishlist में पड़ी पड़ी
उबती रहूंगी
वैसे भी जमाने में तुम अकेले आशिक तो नहीं
जो भेंट करना चाहता हो मुझे अपनी प्रेमिका को
हो सकता है किसी और की 'फूल' लौट आयी हो
और उसे मेरी जरूरत हो...
सुनो तिलस्मानी! मुझे जाने दो ना
जैसे हर बार अपनी 'फूल' को जाने दिया
कभी ना लौट आने के लिए

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सूरज के आगे दीपक बोले, अच्छा नहीं लगता
इस वटवृक्ष के आगे क्या मैं बच्चा नहीं लगता

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बहुत दूर तक हाथ पकड़ कर साथ चलने के बाद
एक दिन उसने हाथ छुड़ाते हुए कहा
"साॅरी! मेरे से नइ(नहीं) हो पाएगा"
मैं हतप्रभ सा देखता रहा उसे
फिर बोला
क्या मतलब तुमसे नहीं हो पाएगा?
वो तुम ही तो थी ना
जिसने हाथ थामा था मेरा जेठ की झुलसती लू में
और एकदम से उसे असाढ़ कर दिया था
उसने कहा "हां लेकिन..."
मैंने उसकी आंखों में देखा वहां कुछ लिखा था
बड़ी मुश्किल से डबडबाई आंखों से उसकी शुष्क आंखे पढ़ने के बाद मैंने कहा
ओह ! मैं समझ गया...सबकुछ समझ गया
उसके बाद वो लौट गयी और मैं...मैं ?
मैं अपना एक हाथ दूसरे हाथ से छुड़ाते हुए पागल की तरह बड़बड़ाता रहा
"साॅरी! मेरे से नइ(नहीं) हो पाएगा"
"साॅरी! मेरे से नइ(नहीं) हो पाएगा"

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लोग कहते है
नई आदत बनाने के लिए
किसी शख्स को भुलाने के लिए
इक्कीस दिन काफी होते है
मूव ऑन कर जाने के लिए
इक्कीस दिन, इक्कीस हफ्ते, इक्कीस महीने
कुल बारह इक्कीस महीने बीत गए
मगर इक्कीस सेकंड्स के लिए भुला नहीं पाया मैं
एक शख्स को

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तेरे नाम का पासवर्ड अब तक बदला ही नहीं
मेरी आंखों में अब तलक तेरा ही इंतजार है

मुझको चाहना, ना चाहना तेरी मर्जी है जाना
मुझे आज भी तुझसे ही प्यार है बेशुमार है


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तूने मुझको ठुकराया तेरी किस्मत खराब  है
जमाने से पूछ तिलस्मानी कितना लाजवाब है

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रात सबके हिस्से में आती है
मगर चांद सबके हिस्से में नहीं आता
सभी रातों की सुबह भी नहीं होती
उनके हिस्से ना सूरज आता है ना धूप ना रोशनी
जरूरी नहीं हर कहानी का अंत प्रकाश में हो
मगर दुनिया में उम्मीद बची रहे
इसलिए ये बात किसी से कहना मत
तुम पढ़ना, गुनना और चुपचाप रद्दी में फेंक देना मेरी कविताओं को
जैसे सरकारी दफ्तरों में दरख्वास्त गरीबों की फेंक दी जाती है

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मेरे हिस्से में तुम नहीं आई
इससे यूं हुआ कि ...
मेरे हिस्से में आए सावन सूखे रह गए
बसंत में फूल खिलना बंद हो गए
सारे मौसम फिर जेठ और पतझड़ हो गए


मेरे हिस्से में तुम नहीं आई
इससे यूं हुआ कि ...
सूरज मुझे ठंडा और चांद गर्म लगने लगा
एक तुम्हारे ना आने से तुम्हें पता है...
मेरी दुनिया कितनी उलट पलट गयी

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उसकी हर एक तस्वीर सहेज कर रखी है
जैसे सरकार ने गोपनीय दस्तावेज रखी है

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