प्रेम में मजनूँ राँझा रोमियो या फरहाद नहीं होते हर लड़के
प्रेम में नीलकंठ भी हो जाते है कुछ लड़के
प्रेम में नीलकंठ हो जाते है जो लड़के
सारा अपमान संत्रास अकेले धारण कर वो लड़के
लांछन नहीं लगने देते प्रेमिका पर
नयनपट जटाओं में अश्रु गंगा को बांध कर
प्रेमिका को मुक्त कर देते है वो लड़के
इन नीलकंठों के हिस्से में जरूरी नहीं
कि सती के वियोग के बाद पार्वती आए
कुछ नीलकंठ वियोग का भस्म रमायें
आजीवन वैरागी हो जाते है
वैसे वैरागी नहीं जो गंगा घाट पर मिले
वैसे वैरागी जीवित होते हुए भी जिनका
अंतिम संस्कार हो चुका हो प्रेम के हाथों
- कमल यशवंत सिन्हा ‘तिलस्मानी’-
मांग के सिंदूर को जब रक्त से लाल किया
फिर हमने भी ख़ुद को काल से महाकाल किया
धर्म पूछ के बन्दूक चलाने वालो का हमने
एयर स्ट्राइक से पुनः पुनः इस्तक़बाल किया
अवनी अम्बर से शोले बरसायेंगे
तुझको तेरी ही ज़मीं में दफ़नाएँगे
भगिनियों के नैन नीर व्यर्थ ना जाएँगे
आतंक क्या होता है हम तुझे बतायेंगे
हिन्द का इतिहास शायद पूरा ज्ञात नहीं तुम्हें
गौतम गांधी की धरती में परशुराम भी तो आयेंगे
सत्य अहिंसा करुणा इतनी ही है हमारी पहचान क्या
आओ बैठों तुम्हें कुरुक्षेत्र का युद्ध गान सुनायेंगे
- कमल यशवंत सिन्हा (तिलस्मानी)-
एक ज़ुबान होने से पहले
मैं एक जोड़ी कान होना चाहता हूँ
अपनी बात कहने से पहले
ज़रूरत समझता हूं सुने जाने की
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अगर एक ओर तुम हो
और दूसरी ओर…
दूसरी ओर!!!
अगर एक ओर तुम हो
फिर दूसरी ओर कौन देखता है ?
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कौन कमबख़्त कहता है फरवरी मोहब्बत का महीना है
हमसे पूछो फरवरी ने हमसे क्या कुछ नहीं छीना है-
मसला ये है कि तुमको कुछ याद नहीं
मसला ये है कि मैं कुछ भी भूला नहीं
© कमल यशवंत सिन्हा-
बस एक फैसला लेना था मुझको
फ़िर ख़ुद को झोंक देना था मुझको
आसान कहाँ था तुमसे इश्क़ करना
आसान कहाँ कुछ चाहिए था मुझको
© कमल यशवंत सिन्हा-
स्त्री दुख में नदी हो जाती है
पुरूष दुख में पठार हो जाते है
© कमल यशवंत सिन्हा-
फ़िर हम यूँ दर-ब-दर हो गये
अपने ही शहर में बेघर हो गये
खुद को तलाशता रहा तिरे बाद मैं
जो तुझसे बिछड़ा सबसे बेख़बर हो गये
तिरे साथ मिरे भीतर इक गांव बसता था
तिरे बगैर हम पूरे शहर हो गये
तिजोरियों में संभाल कर रखा जाये वो राज थे हम
अब तो हम हर सुबह की ताज़ा ख़बर हो गये
हम जो जान थे उनकी आज कुछ भी नहीं
जो आँखों को चुभते थे हमसफर हो गये
बड़ी पूछ परख थी अपनी भी ज़माने में
इश्क़ में मगर हम कितने बे-कदर हो गये
अब तो मौत को दौड़ के गले लगा लेंगे हम
ज़िंदगी से ख़फ़ा हम बड़े बेसबर हो गये
वो 'तिलसमानी' था जो जादू जानता था
तिरे आंखों के आगे सारे बेअसर हो गये
© कमल यशवंत सिन्हा 'तिलसमानी'-