कमल यशवंत सिन्हा   ('Tilasmani_KYS')
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माचिस की ज़रूरत नहीं है मुझे, मैं अपनी जेब में कलम रखता हूँ। ©Tilasmani_KYS
Joined 12 October 2018


माचिस की ज़रूरत नहीं है मुझे, मैं अपनी जेब में कलम रखता हूँ। ©Tilasmani_KYS
Joined 12 October 2018

मसला ये है कि तुमको कुछ याद नहीं
मसला ये है कि मैं कुछ भी भूला नहीं

© कमल यशवंत सिन्हा

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बस एक फैसला लेना था मुझको
फ़िर ख़ुद को झोंक देना था मुझको
आसान कहाँ था तुमसे इश्क़ करना
आसान कहाँ कुछ चाहिए था मुझको

© कमल यशवंत सिन्हा

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स्त्री दुख में नदी हो जाती है
पुरूष दुख में पठार हो जाते है

© कमल यशवंत सिन्हा

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फ़िर हम यूँ दर-ब-दर हो गये
अपने ही शहर में बेघर हो गये

खुद को तलाशता रहा तिरे बाद मैं
जो तुझसे बिछड़ा सबसे बेख़बर हो गये

तिरे साथ मिरे भीतर इक गांव बसता था
तिरे बगैर हम पूरे शहर हो गये

तिजोरियों में संभाल कर रखा जाये वो राज थे हम
अब तो हम हर सुबह की ताज़ा ख़बर हो गये

हम जो जान थे उनकी आज कुछ भी नहीं
जो आँखों को चुभते थे हमसफर हो गये

बड़ी पूछ परख थी अपनी भी ज़माने में
इश्क़ में मगर हम कितने बे-कदर हो गये

अब तो मौत को दौड़ के गले लगा लेंगे हम
ज़िंदगी से ख़फ़ा हम बड़े बेसबर हो गये

वो 'तिलसमानी' था जो जादू जानता था
तिरे आंखों के आगे सारे बेअसर हो गये

© कमल यशवंत सिन्हा 'तिलसमानी'

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इश्क़ में कुछ फ़ासले तुमको भी तय करने थे जाना
मैं तुम्हारी चौखट पे खड़ा था दरवाजा तो खोला होता

© कमल यशवंत सिन्हा

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एक तिरे जाने से मेरी दुनिया कितनी वीरान हो गयी
ज़िंदगी कितनी मुश्किल मौत कितनी आसान हो गयी

© कमल यशवंत सिन्हा

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स्त्रियों ने दर्द भुलाने को ईज़ाद किये आँसू
पुरुषों ने दर्द भुलाये नए दर्द को अपनाकर

© कमल यशवंत सिन्हा

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मुझको चाहने का मौसम मेरे बाद आएगा
तिलस्मानि जब गुज़र जाएगा बहुत याद आएगा

© कमल यशवंत सिन्हा

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कहानी के अगले अध्याय में हमको मिलना था
फिर यूँ हुआ उसे जंजीरों से मोहब्बत हो गयी

© कमल यशवंत सिन्हा

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सोने की बालियां भी फीकीं लगती थी
तेरे गुरुवारी बाज़ार के झुमकों के आगे

© कमल यशवंत सिन्हा

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