ग़ज़ल
बह्र- 2122-2122-2122
काफ़िया- ओ की मात्रा
रदीफ़- रहा हूँ
क्यूँ न जाने बेखबर सा हो रहा हूँ
अब नये से ख्वाब फिर संजो रहा हूँ
दर्द मैंने यूँ छुपा करके रखे है
मुस्कुराते लब के पीछे रो रहा हूँ
हो गया था इश्क जिससे कुछ पलों में
आज बरसो बाद उसको खो रहा हूँ
काटने से कट नही पाते ये लम्हें
रात जागूँ और दिन में सो रहा हूँ
चुभ रहे है फूल अब मुझको ये सारे
बाग में अब सिर्फ कांटे बो रहा हूँ- 'Aprichit'
2 MAR 2019 AT 15:38