जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे,
मैं उनसे मिलने
उनके पास चला जाऊँगा...
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर
नदी जैसे लोगों से मिलने,
नदी किनारे जाऊँगा,
कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा...
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब
असंख्य पेड़ खेत,
कभी नहीं आएँगे मेरे घर
खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा...
जो लगातार काम में लगे हैं
मैं फ़ुरसत से नहीं
उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा...
इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा...
विनोद कुमार शुक्ल-
..कवि हूँ मै ।
जो दिखा नही कभी उसको ख़ुदा कहा गया,
जो सामने रहा उम्र भर भला-बुरा कहा गया।
ज़िंदगी क्या ? बिन जवाब का कोई सवाल है,
सो रात भर सुना गया सारा दिन कहा गया ।
ज़िंदगी क्या ? रेत पर खिंची हुई लकीर है,
एक लहर मिटा गयी समंदर बहा गया ।
ज़िंदगी क्या ? ताश के पत्तों का सिर्फ़ खेल भर,
किसकी बेगम पिट गयी किसका बादशाह गया ।
ज़िंदगी क्या ? जन्म से मौत तक का सफ़र भर,
ज़िंदगी को ज़िंदगी भर रास्ता कहा गया ।
ज़िंदगी क्या ? भागना भर एक अंधी दौड़ में,
एक कदम न बढ़ सके उम्र भर चला गया।
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मेरा मौला मुकम्मल सा कोई मकसद नहीं देता,
सफ़र लम्बा नवाजा है सफ़र की हद नहीं देता।
सभी की भूख मिट जाती कोई मायूस न होता,
अगर तू चंद लोगों को यूँ ऊँचा कद नहीं देता।
लोग बाँटे,वतन बाँटे,जुबाने बाँट दी लेकिन,
ये नफरत तो मिटा देता ये सरहद नहीं देता।
कभी तो सोचता हूँ मै जैसे है भले हैं हम,
कोई नेता नहीं देता कोई संसद नही देता ।-
सड़क,नदी,सूरज,पक्षी और मकान बनाया है ,
छोटे बच्चे ने काग़ज़ पर एक जहान बनाया है।
बेशक पेचीदा हूँ मैं पर तेरी समझ में आ जाऊँ,
देख ज़रा मैंने खुद को कितना आसान बनाया है।
महफ़िल दिल के कोने में रोशन है जीवन की भी,
उसके नीचे ही सपनों का क़ब्रिस्तान बनाया है ।
कितना बेबस,कितना आतुर,कितना बेकल,कितना प्यासा,
कारीगर ने जल्दी-जल्दी में इंसान बनाया है।
हद है !फिर टूटेगी मूरत,फिर मंदिर से निकलेगी,
इश्क़ में उसने एक लड़के को फिर भगवान बनाया है ।-
हे जड़ चेतन के महारचनाकार,
आभार,आभार,आभार।
तुमने ये बचपन जवानी बना दी,
जीवन की अनुपम कहानी बना दी,
मै क्या क्या लिखूँ शुक्रिया क्या करूँ,
कैसे करूँ व्यक्त ह्रदय का प्यार:
हे जड़ चेतन के महारचनाकार ।
ये जीवन की नैया सागर अगम,
मेरे साथ चलते रहे 'राम' तुम,
गिरा हौंसला जब भी तुमको पुकारा,
निज हाथ थामो प्रभु पतवार;
हे जड़ चेतन के महारचनाकार।-
उनकी आँखो को झील,गर्दन को सुराही,होठों को जाम कहे देते हैं,
लो शायरी को मोहब्बत,माशूक को खुदा,इश्क को राम कहे देते हैं ll
मेहताब को मेहबूब,आफताब को आशिक,सितारों को आवाम कहे देते हैं,
हम खुदा को यार ,यार को खुदा लीजिये सर -ए -आम कहे देते हैं ll
किसी ने शायर,किसी ने पागल,किसी ने दीवाना,कई बदनाम कहे देते हैं,
प्रेम की परिभाषा नहीं आती हमे लो हम "राधा -श्याम " कहे देते है ll
ज़ज्बातो को ज़िन्दगी,प्रेम को पूजा,इंसानियत को इबादत-ए-राम कहे देते हैं,
दया को धर्म,करूणा को कर्म,नफरतों को "गोविन्द" हराम कहे देते हैं ll-
भगवान करे कि हो जाये नव वर्ष तुम्हारा मंगलमय ll
खुशियाँ आये दुख निकट न हो,जीवन में अब संकट न हों ,
चहुं ओर खुशी के गीत रहें,अब और व्यथायें प्रकट न हों ,
प्रतिकूल न हो जीवन की गति,अनुकूल रहे हर एक समय...
भगवान करे कि हो जाये नव वर्ष तुम्हारा मंगलमय.. ll
नववर्ष नया उत्साह रखे,उत्कर्ष- हर्ष औ उमंग रहें ,
ईश्वर की दृष्टि रहे तुम पर,तेरे राधा रानी संग रहें ,
हर शाम करे सपने पूरे,नव स्वपन लिये आये सुबह...
भगवान करे कि हो जाये नव वर्ष तुम्हारा मंगलमय.. ll
अविचल निश्चय,संकल्प अडिग,प्रगति के पथ पर बढ़े चलो,
हों लाखों बाधायें मग में,बाधा के पर्वत चढ़े चलो ,
डरो नहीं विपदायों से,कर दे तुमको घनश्याम अभय....
भगवान करे कि हो जाये नव वर्ष तुम्हारा मंगलमय...ll
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मिटती नही आसानी से पत्थर की लिखावट,
तब्दील कहाँ होती है मुक़द्दर की लिखावट।
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