ᵀʰᵒᵘᵍʰᵗˢ ᵒᶠ ᵐᵘᵏᵏᵘ   (मुकेश 'उन्मुक्त')
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Joined 1 September 2017


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मैं शब्दों को छोड़ एहसासों पे मरता हूं,

जिस दिन एहसासों को छोड़
शब्दों पर जीने लगा खोजते रह जाओगे।

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एक बार तो देखे वो, उसे मैं आंखों में बसा लूंगा,
गम से भरे इस वक्त से भी मैं खुशियां चुरा लूंगा।

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किसी भी चीज़ का 'आरंभ' उसके अंत की शुरुआत हैं,
और किसी भी चीज़ का 'अंत' एक नए आरंभ की शुरुआत हैं।

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मैं परिंदा बन चलता भले जमीन पर हूं,
लेकिन मेरा घर भी आसमां हैं और सफ़र भी आसमां हैं।— % &

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हां! मैं डरता हूं..

क्यूंकि गुस्से में, मैं ऊंचा बोल लेता हूं,
लेकिन वो, चुप हो जाती हैं।

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सच्चा हैं फ़िर भी अधूरा हैं,

फ़िर तुम उसे प्रेम कहो,
प्यार कहो, मोहब्बत कहो,
या फ़िर इश्क़।

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ये यादों का सिलसिला तो कभी थमेगा नहीं
जो एक बार रुकेगा फ़िर वो चलेगा नहीं
राहों में गिर कर संभल जाते हैं लोग लेकिन
नज़रों में जो गिरेगा फ़िर वो उठेगा नहीं

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मेहनत तो मैं बहुत करता हूं 'साहब'
लेकिन मजदूरी मेरी शून्य हैं

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