kkpbanaras   (kkpbanaras)
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Joined 17 June 2018


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Joined 17 June 2018
22 JUN 2020 AT 22:10

पर पीड़ा से पूर-पूर हो,
थक-थक कर औ चूर-चूर हो,
अमल-धवल गिरी के शिखरों पर
प्रियवर! तुम कबतक सोए थे?

रोया यक्ष या तुम रोए थे?

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17 JUL 2021 AT 15:15

मैं तुम्हें सुनने को
धरती के छोर तक,

गुनगुनाता रहा,
गीत गाता रहा।

तुम कविता बन गई,
मुझमें घुल गई।

अपने हाथों से मैं
तुम्हें सजाता रहा।

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16 JUL 2021 AT 19:59

मेरी चाहत
अब तेरी ख़ैर नहीं
मेरी रूह ने मुझसे
शिकायत करली है।

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11 JUL 2021 AT 10:00

कविता लिखना
मौसमी बारिश-सा है,
कविता समझना
जेठ में सिंचाई करने-सा है।
Caption 👇

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3 JUL 2021 AT 9:16

मेरी कलम को
झूठ न समझना,

कई बरसों से
धन्धा कर रहा हूँ मैं।

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1 JUL 2021 AT 7:33

अपने नए 'उनके' को
दूर रखना
मेरी कविताओं से
मेरे शब्दों में
स्याही नहीं
मेरे रक्त से
सिंचित आत्मा है मेरी।

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30 JUN 2021 AT 16:36

कालिदास! सच-सच बतलाना
रति रोयी या तुम रोये थे?

यात्री

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29 JUN 2021 AT 23:15

इतने पाठ मत सिखा ऐ ज़िन्दगी!
दो-चार दिन ही तो जीना है।
जी लेने दे।

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28 JUN 2021 AT 23:59

हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी

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26 JUN 2021 AT 22:22

"कहीं ऐसा न हो मर जाऊँ मैं हसरत ही हसरत में,
जो लेना हो तो ले लो सब से पहले इम्तिहाँ मेरा"
~ जावेद लखनवी

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