पर पीड़ा से पूर-पूर हो,
थक-थक कर औ चूर-चूर हो,
अमल-धवल गिरी के शिखरों पर
प्रियवर! तुम कबतक सोए थे?
रोया यक्ष या तुम रोए थे?-
kkpbanaras
(kkpbanaras)
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किरायेदार हूँ ज़िन्दगी का।
बनारस बिस्तर है अपना
इसी को ओढ़ता,इसी को बिछाता हूँ।
।
अपने मारे जाने... read more
बनारस बिस्तर है अपना
इसी को ओढ़ता,इसी को बिछाता हूँ।
।
अपने मारे जाने... read more
Joined 17 June 2018
22 JUN 2020 AT 22:10
17 JUL 2021 AT 15:15
मैं तुम्हें सुनने को
धरती के छोर तक,
गुनगुनाता रहा,
गीत गाता रहा।
तुम कविता बन गई,
मुझमें घुल गई।
अपने हाथों से मैं
तुम्हें सजाता रहा।-
11 JUL 2021 AT 10:00
कविता लिखना
मौसमी बारिश-सा है,
कविता समझना
जेठ में सिंचाई करने-सा है।
Caption 👇-
1 JUL 2021 AT 7:33
अपने नए 'उनके' को
दूर रखना
मेरी कविताओं से
मेरे शब्दों में
स्याही नहीं
मेरे रक्त से
सिंचित आत्मा है मेरी।
-
26 JUN 2021 AT 22:22
"कहीं ऐसा न हो मर जाऊँ मैं हसरत ही हसरत में,
जो लेना हो तो ले लो सब से पहले इम्तिहाँ मेरा"
~ जावेद लखनवी-