Jag mein apna naam kro
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वही जज़्बाते है
हां सही सूना तुमने
आज भी वही यादें हैं
वही शामें हैं
वही मुलाकातें हैं-
शब्द नहीं मिल रहे
मेरी किताबों में कोई शब्द नहीं मिल रहे
अफवाहों को हम नहीं मिल रहे
कोई बताए उन्हें कि हम पर्दे में हैं
फिर भी आखें झुकाये हूए
हमसफ़र नही मिल रहे,
रब ख्यालों में खोया हुआ है कही?
उजली टोपी और रगं लाल
सफर में नही मिल रहे,
हाथ मिलाने को जी है करता
पर मिल रही है आखें
नज़र नहीं मिल रहें,
परिंदे को उङने के लिए हम नही मिल रहे
जंगल जल रहे हैं और हंस रहें हैं शहर
कोई कोशिश नहीं है जन्नत को बचाने की
बचानेवालो को तो अपने ही घर जल रहे हैं
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जो होता है होने दो अल्फाज बिखरते हैं, तो बिखरने दो
आवाज गूंजती है, तो गूंजने दो
वो आवाज तुम्हारे कच्चे नहीं होगें,
हर दिन तुम्हारे अच्छे नहीं होगें,
अफवाहों के मेले में दोङकर देखा है हमने
रोती आखों में कोई उम्मीद नहीं मिलती
अगर सजा लिए नम आखों में सपने तुमने
वे सारे सपने तुम्हारे कभी सच्चे नहीं होगें, हर दिन तुम्हारे अच्छे नहीं होगें,
जलती चिरागों को हमने
मशाल बनते देखा है
रात गयी बात गयी
पर इनके बीच दिलो को जलते देखा है
दिल से कहे गये हर लफज
हर दिन तुम्हारे अच्छे नही होगें-