एक दोस्त जो खोया था मैंने
उसकी झलक देखी थी मैंने तुझमे
यारी वो मेरे जैसी रखने
की ललक देखी थी मैंने तुझमें
फिर याद आया वो दोस्त भी तो
मेरा हाथ छोड़ के ही गया था
एक मोड़ पर मुझसे तेरी तरह
मुंह मोड़ के ही गया था
आज फिर वो पुराना दर्द उठ आया है
मेरा धैर्य आज कहां जुट पाया है !-
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
हे नाथ नारायण वासुदेवा
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जिसे घर मानोगे उससे अपेक्षाएं भी रखोगे
यूहीं क्यूं तुम किसी के लिए कुछ लिखोगे !-
तालाब को यूहीं समंदर समझ रही थी मै
उसे सुलझाने में खुद उलझ रही थी मै !-
चुभा जो कांटा मेरे तो दर्द हुआ
वो कांटा मै किसी के ना ही चुभाऊं
बहुत गहरे घाव है जिनके
उन्हे अपनी चोट क्या ही दिखाऊं
वो जो टूटे हुए हैं खुद
उनके कितना मरहम लगाऊं
जोड़ने में उन्हे डर है
कहीं मै ना टूट जाऊं !-
जो ना मिला मुझे बस बही तो बांटना चाहतीं हूं मै
लोगो की खुशियों में अपना सुकून छांटना चाहती हूं मै-
मौसम के साथ जुड़ा हो जैसे मन
बारिश से ठीक हो जाता है
मानो जो इकट्ठा हो गया हो सदियों से
दो पल में सब धुल जाता है !-
लिखते लिखते जो बीता रात का अंधेरा
ना जाने कब सवेरा हो गया
कुछ खास नही था राबता मेरा उससे
जिस शक्श का आंखों में बसेरा हो गया !-
कि टूटता नही अब वो शक्श या
टूटकर दिखाता नही है
किस्से तोह हैं आज भी कई
पर अब वो किसी को सुनाता नही है !-
मैने खुदको वहां तक बांटा जहां तक नजरों
में बड़ी गहरी सी ललक थी जानने की
जैसे ही ओझल हुई नज़रे मैने किस्से बदल दिए!-
थोड़ी सी दुनिया से , बहुत सारी खुद से ही जंग है
कौन कमबख्त परेशान है दुनिया से , हम तो जनाब खुद से ही तंग हैं !-