अपना तो चरित्र ही शतरंज है, प्यादों से शुरुआत देखते है ऊठों से दुर के नजारें, घोड़ों से नीयत टटोलना, और हाथीयों से ताकत आज़माते। अपना राजा हमे पसंद नही, हम वजीर ही अच्छे, किला फतेह कर, अपने राजा कि गद्दी ही हथियाते।
तेरे अंत मे ना सही , कम से शुरू मे तो है... तेरे किताब के शीर्षक ना सही , कहानी मे किरदार तो है़... तेरे आसियाने मे हक ना सही, कम से किरायेदार तो है... तेरे बेशक ना सही... लोगो के शक मे तो है।