इस आईने में तुम ऐसे उतर रही हो, जैसे प्याले में शराब गिर रही हो, चमचमाती धूप जैसे पानी पर, बूंदे कुछ पसीने की माथे पर, खुलती फूलो की पंखुड़ियां जैसी, होठों पर मुस्कुराहट हो जैसी, तारीफ तुम्हारी लिखू कैसे आसमा को मुठ्ठी में समेटु कैसे।।
तुझ्या सारखी तूच, पाहिले मी किती चंद्र चकोर, बघितले बागेत किती फुलांचे कोर, इंद्रधनुष्चे सातही रंग, तुझ्या समोर सगडे बेरंग, पहाटे पाहिले मि, गुलाबांच्या पाखंडी वर दवं थेंब, बघितले मि सौन्दर्य किती खूप, पण तुझ्या सारखी तूच।।
कहना क्या हमेशा जरूरी था, क्या हर बात को पूरा कहना जरूरी हैं, अधूरी बात, अधूरे ख़्वाब भी जीने की वज़ह बन गए, क्या रास्ते इतने बुरे थे, तुम तो बस मंजिल की ही कहते रहे ....
सफ़र ही तो था, जिसमें सब कुछ था, अहसास, तुम, हम। मंजिल का तो डर था, किसे पता पड़ाव पर क्या मिलता, साथ तेरा या रास्ते जुदा, एक सफ़र ही तो था, जिसमें सिर्फ तुम थी और था तेरा साथ.....
नमस्कार दोस्तों मैं yq से अपना account डिलीट कर रहा हूँ। आज कल मेरा मन लिखने का नहीं होता। और कुछ अच्छा लिख भी नही पा रहा हूँ। 8149043292 पर मेरे दोस्त मुझसे संपर्क कर सकते हैं। धन्यवाद आपके सहयोग व आपकी तारीफों के लिए।