दूर होकर भी पास हर पहर रहती हो,
इंतजार बनकर दिल के दर पर रहती हो।
यादों का एक काफिला चलता हैं मेरे संग ,
क्या तुम भी यादों के सफ़र पर रहती हो ?
ये सजना-संवरना, अरे! वक्त बर्बाद ना करो,
तुम उस रूप में मिलो, जैसे घर पर रहती हो।-
बड़ी हिम्मत कर फिर खड़ा हो पाता हूं.
लड़खड़ाते बस कुछ ही दूर चल पाता हूं.
यादों की सर्द हवाएं फिर सीने को चिरती हैं,
मैं ताश के पत्तों की तरह फिर ढह जाता हूं.-
पत्थर की चाहत से नदी अनजानी थी.
बेखबर बावला पत्थर, प्रेमधारा में बदनाम बहता रहा.
पर नदी तो समन्दर की दीवानी थी.
टूटा बिखरा वो पत्थर, प्रेमधारा में गुमनाम घुलता रहा.
पत्थर के रेत बनने की यही कहानी थी.-
(बिंदी वाली लड़की)
कुछ इस तरह वो मुझसे नाराजगी जताती है,
गर मैं ना मनाऊ तो बिंदी नहीं लगाती है.
गुस्से में भी क्या खूब प्यार बरसाती है,
वो तो नहीं, पर उसकी बिंदी मुस्कुराती है.-
(बिंदी वाली लड़की)
किस्सा वो अपनी सखियों को कुछ यूं सुनाती है,
होंठो से छुए अपने माथे को बिंदी से छुपाती है.-
(बिंदी वाली लड़की)
शब्दों की कमी थी मुझमें, कुछ सीखने किताब-ए-हिंदी ले आया.
पसंद से वाकिफ ना था उसके, मैं पहली मुलाकात में बिंदी ले आया.-
(बिंदी वाली लड़की)
कि सूरत उसकी गोरी हो या सांवली हो,
लगाए वो काजल और माथे पे बिंदी काली हो.-