I hope the whistle-blower inside me never dies.
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तुम बड़े भले ही सही, मैं बेवफा ही सही
क्या ज़रूरी है, जेब में, मेरे गुनाहों का बही खाता रखो?
मुझे खूबसूरती का गुमा नहीं है 'किशोर'
पर क्या ज़रूरी है, हमेशा मेरे आगे आईना रखो?-
पढ़ कुछ लफ्ज़ों को यारो, बन रहा था ज़हीन मैं
अक्ल पे करके भरोसा, घूमता था यकीन में
दान करके एक रोटी, कर रहा था रौब मैं
जब फरिश्तों से मिला, तो गड़ गया ज़मीन में-
उम्र के साल जो बढ़ने लगे
जी में कितने मलाल बढ़ने लगे
वो इमारत जो कभी न बन पाए हम
उसकी ईंटों के ख़याल बढ़ने लगे
मुड़ चुके हैं मोड़ जो हम अब तलक
क्यों मुड़े, अब वो सवाल बढ़ने लगे
बेसबब सी हो चली है ज़िंदगी अब
साल दर साल बस बढ़ने लगे हैं-
तकलीफों में गर बेतकल्लुफी सी आने लगी है..
हाँ तुझे ज़िंदगी जीनी अब कुछ आने लगी है..-
जान पहचान वालों से अब कतराता हूँ मैं
बेग़ानों से गुफ़्तगू करके मुस्कुराता हूँ मैं
दिन महीने साल, अपनी रफ़्तार में हैं
उनको पकड़ नहीं पाता हूँ मैं
दिल को अब जहां में कोई आशियाँ नज़र नहीं आता
बे-आशियाँ जिए जाता हूँ मैं
अब तो ख़्वाब देखना कर बंद 'किशोर'
बारहा तुझको जगाता हूँ मैं-
मुझे शतरंज से वैसे तो कोई शिकायत नहीं है
पर बस प्यादे को ही क्यों पीछे लौटने की इजाज़त नहीं है-