किशन सिंह शुर्यवंशी   (मेरे अल्फ़ाज़)
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Joined 16 February 2018


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Joined 16 February 2018

कैसे मानूं वो सहारा नहीं था
आंखों में उसके इशारा नहीं था
यूं तो कई रातें हमनें अनसोई गुजारी
कैसे मानूं?
उसने एक रात भी मेरे लिए यूं गुजारा नहीं था
जिसे इश्क हम इश्क से भी जियादा करते थे
कैसे मानूं वो हमारा नहीं था।।।— % &

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मैं सुबह कहता रहा
वो शाम कहती रही
मुझे मगरूर
ईश्क ए नाकाम कहती रही
मैं नफरत को उसके
पी रहा था हर रोज
जिसे मैं दवा कहता रहा
वो जाम कहती रही
ईश्क नहीं करना आता
ये उसने कहा
ईश्क में बर्बाद हमें
अवाम कहती रही।।।— % &

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कितनी भी मोहोब्बत हो किसी भी शक्श से
बदल हीं जाति है मोहोब्बत एक दिन अश्क में
वो सिर्फ यादों में बंध के रह जाते हैं सपने की तरह
जो हर दफा नज़र आया करते थे उसके अक्श में।।।।

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मैं गले लगा के रख लूं खुद में
इस बार अगर मिल जाओ तो
कैद कर लूं आंखों में
चलते फिरते जो दिख जाओ तो
मैं ओस बन के लिपट जाऊं
रेत सी जो बिछ जाओ तो
मैं हवा बन तुझे समेत अपना बना लूं
तुम फिजा में जो मिट जाओ तो
मैं मोहरा सबसे महंगा बन जाऊं
तुम मोहरों में जो बिक जाओ तो।।।

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गुनाह था क्या तुझसे ईश्क करना?
जबसे तुम गयी हो
गुनेहगार खुद के बन बैठे हैं।।।

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वीरगति जिसे मिली युद्ध में
मातृभूमि को जिसने प्राण दिया
उसके सैया को तुमने छुआ नहीं
और दुष्ट बाबर का सम्मान किया?
जिसने लूटा देश का सोना
जिसने नालंदा फूंक दिया
तुमने दोगले मुगलों का नाम जोड़
क्षत्रिय योद्धाओं पर थूक दिया
महाराणा का नाम नहीं
संगा का अभिमान नहीं
बप्पा रावल भी गायब हैं
मिहिरभोज की शान नहीं
कैसा इतिहास तोड़ा है तुमने
इस इतिहास में बिल्कुल जान नहीं
जो थे मुगल इतने योद्धा
तो ये हिंदुस्तान कहां से जिंदा है?
अरे ऐसे इतिहासकारों से कह दो
"ऐसे फर्जी कहानियों से हम तेरे शर्मिंदा हैं"

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प्रियतम समय बीत गया अब
मुझको छोड़े जग जीत गया सब
मेरा अब आया नहीं
आया तो सब छूट गया तब
आंखों में नींद नहीं है
आराम नहीं है चादर में
तिरस्कार की बदबू आती है
अब तो हर एक आदर में
प्रियतम तुम प्रिय हमारे
अक्षु तेरा हीं चांद बसाए
नजरें तेरी भी धुंधली होए
अब तो हमसे आस लगाए
हारे नहीं हैं हार के भी
जीवित हैं स्वयं को मार के भी
तुमसे हीं ये बाट लगाए
सोच सोच दुखे नस माथे का
कैसे बीते तुम बिन जीवन
अंगना में अब खाट लगाए।।

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And his mighty rise went way beyond her expectations
To body and deep beyond the universe of her
And there on she belonged to the true beast

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छोड़ के ये दुनिया मैं महादेव में समाया हूँ
तेरे पत्थर के शहर से ठोकर खा के मैं यहाँ पर आया हूँ
मेरी जिंदगी को बर्बाद करने वाले को माफ कर दोगे?
दिल से पूछो ना एक बार फिर से तुम मुझे इंसाफ कब दोगे।।।

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गरज गरज के मुगलों की सेना जब रण में आयी थी
जब जब वशुधा भारत माँ की खतरे में आयी थी
जब खिलजी ने अपना पर पूरे भारत में फैलाया था
जब औरंगजेब सा पापी सत्ता को ललचाया था
शाहजहाँ से ले के अकबर या बाबर से हुमायूँ तक
सबकी औकात चवन्नी की सिर्फ राजपूतों ने दिखलाया था
महाराणा से ले कर पृथ्वीराज चौहान लड़े
दुर्गादाश राठौड़ लड़े राणा सांगा जी महान लड़े
गोरा बादल की वीर गाथा याद है या फिर भूल गये
या किताबों के चंद पन्ने में अपनी तारीफ में झूल गये
पद्मिनी माता य़ाद है या पन्ना धाई भी याद नहीं
अरे इतिहास बदल सको तुम इतनी तेरी औकात नहीं
सिंह नाम रख के गीदर शेर नहीं है बन जाता
बलिदान दिये इस मिट्टी में खून से दामन सन जाता
इतिहास चुरा के आज सबको क्षत्रिय बनने की चाह बड़ी
क्यों राजपूत हीं थे रण में इसकी है अब आह बड़ी
जब तुम महफूज रहे तो हमने खून से जमीन को धोया था
जब मुग़लिया तलवार खून के आँशू रोया था
आज तुम्हें जलना हमसे पर हम जैसा हीं होना है
वो आसमान भी खैरात है राजपूती का उसका हीं हर एक कोना है।।।

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