Kishankumar Agrawal  
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Joined 15 November 2018


Joined 15 November 2018
27 APR AT 23:52

वक्त ठहर सा गया है कहीं दूर ।
आओ कुछ दूर पैदल चलें ,
के आगे कोई 'सवारी' मिल जाए ।

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10 APR AT 13:49

कुछ बदल सा गया है शायद
कुछ पहले सा नहीं रहा शायद
शीशे टूटे थे दीवारों से टकरा कर
वो दीवार भी अब दीवार नहीं रहा शायद

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5 APR AT 21:32

सफर में है आज सारा शहर
बस हम ही रूके हैं.. उनके इंतजार में

वो आएंगे तो सारा शहर रूक जाएगा
ज़मीं रूक जाएगी.. आसमां झूक जाएगा

दौड़ने लगेंगी हमारी दिल की धड़कनें
न वो रोक पाएंगे.. न मैं रोक पाऊंगा

जब वक्त होगा उनके जाने का
फिर से रूक जाउंगा मैं मगर.. और
'सफर' में है होगा सारा शहर.. #सफर

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30 MAR AT 14:19

मेरे अंदर एक दुनिया रहती है
रोती है हसती है सोती है जगती है

अधूरा सा लगता है सबकुछ कभी
ज़माने के साथ मगर चलती है

ढूंढ़ती हैं किसे.. कुछ पल रूबरू हो
तनहाई से खूब डरती है

मगरूर नजर आते हैं सारे अपने में
अपनी हसरतों को समेट लेती है

थक-हारकर लौट आती है मेरे पास
मेरे सिरहाने आकर बैठती है

रोती है हसती है सोती है जगती है
मेरे अंदर 'एक दुनिया' रहती है

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30 MAR AT 13:48

हर रोज़ सुबह आती है वो मेरे पास
मेरी उंगली पकड़ कर ले जाती है ।

गली... मोहल्ले... चौराहे...
न जाने कहां-कहां ढूंढ़ती रहती है
कुछ अपना खोया हुआ सामान ।

मैं 'जिंदगी' के साथ
सारा शहर घूम चुका हूं ।।

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27 MAR AT 15:39

रूक रूक कर जान लेती है
बड़ी जानलेवा लगती है ये ज़िन्दगी।

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24 MAR AT 9:01

ये सूना घर पसंद नहीं मुझे
आकर तुम अपनी आवाज़ भर दो ना।

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23 MAR AT 23:49

उन्होंने पूछा,
कहां सा सीखा तुमने लिखना ?
हमने कहा, बस 'जिंदगी' से !

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20 MAR AT 11:20

सूना सा लगता है घर का आंगन
वो सुबह की हल्की-हल्की धूप जो आती थी
मेरे आंखों में सूरमा लगाती थी
अब न जाने कहां चली गई।

बादल ने घेर रखा है आसमां
सांसों में अजीब सी उलझन है
बरस जाएंगे आज बूंदें ख्वाहिशों के
दिल भी सीने में बेजोड़ पड़ा है ।

कमी है न जाने किसकी
जरूरत है रूखी तक़दीर मनाने की
जिंदगी की इन लम्हों में
तुम 'साथ' होते तो क्या बात होता ।।

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18 MAR AT 9:14

जूदा कर ही दिया आखिर ख्वाबों ने मुझे उससे
देर रात तक जो चलता रहा 'चांद' सफर में मेरे ।

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