ख़ामोश सी रात...
बंद कमरा...
एक छोटी सी टेबल...
कुछ किताबें..
हाथ में मोबाइल...
टेबल पे चाय.....
और कुछ बिखरी हुई यादें !!-
मंजिलें दिखाई देते नहीं कभी घरों पे अक़्सर
वरना 'घर' कौन छोड़ना कभी चाहता है भला ।-
बड़े सुलझे हुए लगे आज 'बरसात की बूंदें'
जिंदगी की उलझनों में रहे होंगे सायद कहीं।-
मुश्किलें तो बहुत सारे हैं
किसको अपने सर बिठाएं।
वजूद का वजन माप लेता कोई
सर का वजन कैसे बतलाएं।।-
थोड़ा महंगा लगा मोबाइल जो तुम्हारे हाथ में था
उन आंसूओं का क्या जो तुमने मुझे दिया था-
बड़े सपने बड़े शहरों में ही पूरे होते हैं
ऐसा कहकर 'मेरी गांव' ने भेजा है मुझे।-
वक्त ठहर सा गया है कहीं दूर ।
आओ कुछ दूर पैदल चलें ,
के आगे कोई 'सवारी' मिल जाए ।-
कुछ बदल सा गया है शायद
कुछ पहले सा नहीं रहा शायद
शीशे टूटे थे दीवारों से टकरा कर
वो दीवार भी अब दीवार नहीं रहा शायद-
सफर में है आज सारा शहर
बस हम ही रूके हैं.. उनके इंतजार में
वो आएंगे तो सारा शहर रूक जाएगा
ज़मीं रूक जाएगी.. आसमां झूक जाएगा
दौड़ने लगेंगी हमारी दिल की धड़कनें
न वो रोक पाएंगे.. न मैं रोक पाऊंगा
जब वक्त होगा उनके जाने का
फिर से रूक जाउंगा मैं मगर.. और
'सफर' में है होगा सारा शहर.. #सफर-