ज़िंदगी तुझसे मुहब्बत नहीं मुझे
मैं जिंदा हूँ कि
गर मर गयी
तो मेरे बुढ़े पिता अनाथ हो जायेंगे-
I rather be a unsuccessful HUMAN than a successful person who isn’t human
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सारी जद्दोजहद तो बस ज़िंदा रहने के लिये है
ज़िंदगी तो कब की दम तोड़ चुकी है-
‘माँ’ जैसी कोई दूसरी चीज़ हो नहीं सकती
अगर कहीं मिल भी जाये माँ जैसी कोई
पर फिर भी वो ‘माँ’ हो नहीं सकती
अकेले में सुबक-सुबककर ख़ूब रोती हूँ
चाहूँ भी तो ‘माँ’ से चिपटकर रो नहीं सकती
नये-पुराने ज़ख़्मों की खुद सिलाई तो कर लूँ
पर घाव भर दे ऐसी सिलाई कर नहीं सकती
‘माँ’ का घर छूटे तो बड़ा दर्द होता है
‘माँ’ का साया छिन जाये ऐसी चोट हो नहीं सकती
ऐसा नहीं कि कोई और तकलीफ़ ना होती
पर उसके जाने से बड़ी कोई तकलीफ़ हो नहीं सकती-
बेशक मेरी उड़ानों से अंबर को फ़र्क़ नहीं पड़ता
अंबर को फ़र्क़ पड़े ये मेरा मक़सद भी नहीं है-
आघात पर आघात
ज्वालामुखी से भीषण ताप
धरती-नभ के सब द्वार बंद
मौन सब मानव-संत
ना कोई उम्मीद
ना आँखों में नींद
आँसू भी पथरीले
विष से अधिक विषैले
जीवन-मृत्यु का कोई भेद नहीं
क्यों होता फिर भी प्राणांत नहीं-
ह्रदय में अगर डर पसरा हो तो
चिराग़ों के रौशन होने से भी अंधियारा नहीं मिटता-