समंदर-ए-इश्क था वो खुद को बचा नहीं पाए हम जख्म इतना गहरा हुआ के दिखा नहीं पाए हम, सोचा था,कुछ तो तोहफा मिलेगा मोहब्बत का हमें, इनाम मिला बेवफाई का उसे होठों में दबा लाए हम...
छोड़ कर चला गया,अब आने वाला कोई नहीं तड़प आज भी है,मगर तड़पना वाला कोई नहीं भीगी है जमीन,अब सुखाने वाला कोई नहीं भूले हैं हम, हमें भुलाने वाला कोई नहीं छोड़ दिया सबने,अब अपनाने वाला कोई नहीं दिल में बसाया था,उसे हमें बसाने वाला कोई नहीं
हाथ छोड़ा कब था, तू एक बार पकड़ कर तो देख आज भी इंतजार है तेरा, तू गली से गुजर कर तो देख और मौत छू ले तुझे, इतना कमजोर नहीं इश्क मेरा कीरत! यकीन नहीं, तो एक बार पीछे मुड़कर तो देख.....
उसका चेहरा जो देख लिया कल रात भर सोय नहीं हम रात इंतज़ार करती रही हमारा,पर उसके होय नहीं हम अनगिनत से ख्वाब लिए फिरती है ये आँखें मेरी उसका दीदार कर किसी और ख्याल में खोए नहीं हम
खटक तो बहुत लोगों को है हमारे नाम की गर हिम्मत है तो अपने मन की करके दिखाएं नफरत की चिंगारी तो हर किसी के दिल में है मसाला ये है कि चिंगारी को आग कैसे बनाएं
ये बातों का सिलसिला बंद करो वरना बर्बाद हो जाओगे सब के बीच रहकर भी अलग ही आलम में खो जाओगे इस कदर टूट कर बिखरोगे जाने के बाद रूह जिस्म से नहीं निकलेगी और मौत की गोद में सो जाओगे
वो जब से सामने आए हैं ये आंखें किसी का दीदार नहीं करती समंदर-ए-इश्क है वो जिसे कोई नदी पार नहीं करती कत्ल का इल्जाम लगाया है उसके शहर ने हम पर इसलिए निगाहें मेरी अब किसी पर वार नहीं करती
उनके लिए लिखने बैठे तो अल्फाजों में उलझ कर रह गए एक अरसे से छुपा रखा था जुबान ने वो निगाहों से कह गए हम तालाब थे तालाब बने रहे और वो इश्क का दरिया बनकर बह गए