धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैंने देखा है
कोई तो है जिसे अपने में पलते मैंने देखा है
तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन है
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते मैंने देखा है
न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है
ख़ुद अपने-आप को नींदों में चलते मैंने देखा है
मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें
तिरे सीने में अपना दिल मचलते मैंने देखा है
बदल जाएगा सब कुछ बादलों से धूप चटख़ेगी
बुझी आँखों में कोई ख़्वाब जलते मैंने देखा है
मुझे मालूम है उन की दुआएँ साथ चलती हैं
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है
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गंगा माँ की वरदान हूं
2 जुलाई को धरती पर आयी
बस तभी से सीख रही
लहरों ... read more
धूप को छांव को, बरखा बहार को प्रिये तेरे साथ से पहचानती हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं बस तेरे नाम, से ही तो जानती हूं
कितने सावन हमने पीछे छोड़े सुख-दुख के पलों से नाते जोड़े
जुटी खुशियां और आशाएं भी टूटी करें मगर क्यों गम जो दुनिया रूठी
मीत मेरे मैं तो, तेरे अपनेपन की छांव तले किस्मत सँवारती हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं बस तेरे नाम, से ही तो जानती हूं
एक दूजे के आंसू हम पी लेते हैं लिए हाथ में हाथ हम जी लेते हैं
साथ-साथ गुजारे कितने पड़ाव स्मृतियों में बंद है खुशबू के गांव
कोई अकेला होगा तो काम आएगी यादों की पोटली यूं ही संभालती हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं बस तेरे नाम, से ही तो जानती हूं
आहट देहरी पे, आने वाली साँझ मीत मेरे बैठें,
आअब तज काज
दूर क्षितिज पर, मिले धरा-आकाश परे देह के शाश्वत यही आभास
अनुभूतियों के चित्र पटल को मैं तुम संग अकसर निहारती हूं
साथी मेरे, इस जिंदगी को अब मैं बस तेरे नाम, से ही तो जानती हूं|
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एक दिन सब पा लेने की खुशी
और सब खो देने का गम
बराबर हो जाता है।
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दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
पति का नाम भरोसा है, पत्नी का नाम समर्पण
पति-पत्नी एक दूजे पर कर देते हैं सब अर्पण।।
पति के उदास होते ही पत्नी के आँसू निकलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
नोंक-झोंक भी इस रिश्ते की एक निशानी होती है
रूठने और मनाने से मशहूर कहानी होती है।।
जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये कभी ना बदलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
'हम दो-हमारे दो' की घड़ी सुहानी आती है
पुत्र पिता का, पुत्री माँ का बचपन फिर से लाती है।।
सोलह संस्कारों में 'विवाह' को सब शास्त्र श्रेष्ठ समझते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
शादी का लड्डू वास्तव में अपना असर दिखाता है
खानेवाला पछताता है और न खानेवाला ललचाता है।।
खाकर पछताने में ही फ़ायदा है, बड़े-बुज़ुर्ग यह कहते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
विवाह किया है तो विश्वास करना अपने जीवनसाथी पर
कान देखना, कौआ नहीं, बात-बात पर मत जाना लड़।।
महल हो या जंगल 'सियारामजी' मिलकर रहते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।-
सच्ची सी है झूठी सी है बातो की अलग कहानी है
कुछ अपनी है कुछ गैरों की है बस इतनी सी बात बतानी है
एक मौन है जो अंदर तक फैला
एक बात जो कह दि कोई सुन न सका
कुछ कहते कहते शांत हो गई
कुछ कहकर भी कुछ कर न सका
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घर की बुनियादें, दीवारें, बामो-दर है बाबूजी
सबको बांधे रखने वाला ख़ास हुनर है बाबूजी
तीन मुहल्लों में उन जैसी क़द-काठी का कोई न है
अच्छे-ख़ासे, ऊँचे-पूरे क़द्दावर है बाबूजी
अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्माजी की सारी सज-धज, सब ज़ेवर है बाबूजी
भीतर से ख़ालिस जज्बाती और ऊपर से ठेठ-पिता
अलग, अनूठा, अनबूझा-सा इक तेवर है बाबूजी
कभी बड़ा सा हाथ ख़र्च है, कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा साहस, आधा डर है बाबू जी
~आलोक श्रीवास्तव-
बत्तियाँ बुझाकर बैठा हूँ, घर की दीवारों चुप रहना
करवट बदल रहे बिस्तर पर,ख़ाब हज़ारों चुप रहना
जिसको आना है आ जाए सनद रहे दरवाज़े पर
दुनिया-दारी वाले जूते, वहीं उतारो चुप रहना
:/शंकर
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तेरी चुनरी मेरी चादर,मेरी कुटिया तेरा घर
तेरी आँखें मेरी नींदें, मेरा कांधा तेरा सर
:/शंकर
#जिल्दसाज़ी-
तुम आज भूखे ना रहो इसकी चिंता माँ करती है
तुम कल भूखे ना रह जाओ ये इंतजाम पिता करते है
तुम्हारे जीवनकाल में बस यही दो बातें
अनंतकाल तक तुम्हारे साथ होंगी-