तरस जाए आँखें दीदार को तो क्या हुआ
खुद को वीरानियों मे मत पाना,
मोहब्बत-ए-वफा को नादानियाँ समझ जाना।
गऱ कोई पूछ ले किरदार मुहिब्ब में..
आँखें नम ना करना नजरें झुका मुस्कुरा लेना
और एक दिलकश अफ़साना बताकर
वफा का अंजाम समझाना ।।
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अच्छाई पर हुई बुराई की हार ,
श्रीराम आए वापस अयोध्या करके लंका पार ,
तभी से हम सब मनाते है दीपावली दीपों का त्योहार।
करते है लक्ष्मी पूजा खुशी से जलाते हैं दीये हजार,
पर असल जिंदगी मे भूल जाते है लक्ष्मी का सार ।
बहुत जलाए दीये खूब बजाए पटाखें ,
अब बदलते है इस त्योहार को मनाने का नज़रिया
नयन पर पड़े पर्दे हटाके ।
एक तरफ लक्ष्मी की पूजा हो रही होती है ,
तो दूसरे ही पल कही कोई स्त्री किसी के ईर्ष्या,
द्वेष और काम के भोग से पीड़ित अपना अस्तित्व खो रही होती है ।
काश ! समझ सके सब घर की साफ-सफाई
के साथ समाज की गन्दगी भी हटाना ज़रूरी है ,
वरना इन सब बुराईयों से घिरे समाज मे
लाख दीये की रोशनी भी अधूरी है ।
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लड़की : " तुम हमें इतनी इज्जत क्यों देते हो ?"
लड़का : एक गम्भीर मौन के बाद...
"तुम दीवाली पर सूट पहनो या साड़ी
हर सलीके मे लगती हो प्यारी
तुम्हें देवी कहूँ या साधारण नारी
असल मायने मे घर की लक्ष्मी हो हमारी.. "-
किसी के चले जाने के बारे मे
दुःखी होकर नही उत्साह से बताओ
फिर एक दिन मन का शोक
स्वंय ही समाप्त हो जाता है
और हृदय एकांत चाहता है ।
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कहते है कि, दिल में रब बसते है
दिल नही तोड़ा करते..
किस्से जो शुरू किए तो अधूरा नही छोड़ा करते..
मगर जब जंग दिल और दिमाग के बीच का हो ,
अना और आबरू की हो ,
तो दिल भी टूट जाया करते है..
और किस्से - कहानियाँ भी अधूरी रह जाया करती है..
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बनारस के अस्सी घाट सी लगती हो तुम....
तुम्हारे पास आकर बैठ जाने मात्र से ,
सारे दुःख समाप्त हो जाते है..
और मै तुझमें कही विलीन सा हो जाता हूँ।
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यू रास्ते नही बदला करते
सफर से परेशान होकर..
कोयला भी हीरा बनता है
मगर अपनी पहचान खोकर..-
ख्वाहिशें और उनसे गुजरने वाले रास्ते
अगर एक हो जाए....
तो लोगो के मलाल ना खत्म हो जाए ।-
लोग कहते है रो लेने से, ये दर्द हल्का होता है।
फिर वही लोग क्यों कहते है, तू लड़का होकर रोता है।।
पागल है क्या, कायर है क्या, बच्चों जैसा रोता है।
मतलबों की इस भीड़ में तू, भले कितने दर्दों में सोता है।।
तू लड़की है तू रो सकती है, देती दुनिया अधिकार उसे।
फिर क्यूं लड़को के रोने पर, करते अपने ही तिरस्कार उसे।।
भावनाओं से जुड़ा है आसूं, जिससे जुड़े संबंध कई।
फिर टूटने से रिश्तों के धागे, आसूं आंखों से बह ही गई।।
सुना है आसुओं को पीने से, बनते है शरीर में जहर कई।
पर निठुर निर्लज्ज समाज को इससे, पड़ता नही है असर कोई।।
पैदा होते ही रोते है, मरने पर भी सब रोते है।
जब खेल है सब इस रोने का, तो लड़के क्यूं नही रोते है।।-
जज़्बाती होना तो आसान है।
मुश्किल तो उन्हे छिपाना है।।
हक जताना बड़ी बात नही।
मुश्किल तो ताउम्र निभाना है।।-