हर आईने में अक्स क्या देखती हों, रूप और रंगत दोनों भरपूर हैँ!!
नियत और फ़ितरत आज भी मिल नहीं पाती-
दूध के उफान सा तुम्हारा स्वाभाव और उसपे गैस कि तेज आँच !!
रसोई की मद्धम रौशनी और तुम्हारें माथे पर पड़ी पसीने से भीगी लटें !!
एक तो बिजली बोर्ड से परेशान दूसरा जलते हुए मिट्टी के तेल की बदबू !!
इस पर तुम्हारी आँखें, दीवार में पता नहीं मेरे जी में क्या टटोलती रह रहीं थी !!
पतीले में चाय की पत्ती उबाल खा खा के आधी हो चुकी थी !!
अदरक कुटी हुईं थी, काली मिर्च और लौंग के साथ !!
चाय के गिलास धोने को पड़े थे, साबुन ख़त्म होने को चुका था !!
घड़ा मे भी पानी भरना था, तार पर सूख रहे कपडे उतारने और प्रेस करने को थे !!
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आसमान काला हो रखा था, बादल भरे हुए थे !!
धरती पुकार रहीं थी, प्यासी हो बूंदो की दरकार थी !!
सदियों से जिस अक्स की तलाश मे पुनर्जन्म लिए जा रहा थी!!वो अक्स जीवंत हो गया तो चौंक क्योँ गई, एक ही जीवन हैँ!!
महादेव के सोलह सोमवार वाला व्रत भी ऐसा फल नहीं देंगे!!
अब तो दुबारा जन्म लेने की ना आकांक्षा होगी ना इच्छा!!
पता नहीं कितने जन्म का उधार, एक जन्म में चुकता किया हैँ!!
ये गिला तो नहीं कर सकती कि अधूरी थी या अधूरी रह गईं!!
सुना तो होगा कि एक चुटकी सिंदूर कि कीमत, कोई आंक नहीं पाया!!
आंकता कैसे, जब पता हो उसमें क्या क्या मिल सकता हैँ!!
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वो जो बैठक चल रहीं थी, जाम पे जाम छलक रहे थे!!
तुम्हारा ध्यान किधर था, महफ़िल में तो नहीं था!!
बाहर जाना नहीं चाह रहीं थी, अंदर शामिल नहीं थी!!
मैं तो वहीं था, जहाँ धुआँ था!! धुआँ भी क्यों नहीं होता !!
जिंदगी की डोर का एक छोर थाम रहा था, दूसरा छूट रहा था!!
दूसरा भी थामता, उससे पहले डोर ही टूट गईं !!
डोर रेशम की थी नहीं, खिंचती चली जाती!!
धागे थे सूत के, ज्यादा खींचे टूट गए!!
टूटी हुईं डोर से आज तक कभी कोई नतीजा निकला नहीं
बांधो तो भी गाँठ पड़ जाती हैं, काम तो शायद फिर भी करती हैं!!
दिखेगी अच्छी नहीं, रूप का क्या हैं, ज्यादा चलता नहीं हैं!!
रंग तो उड़ता रहता हैं, नया रंग सिर्फ होली पर नहीं चढ़ता!!
ऋतु बदलने पर भी चढ़ता हैं, सावन हरा लाता हैं!!
पतझड़ हरे पत्तों को मिट्टी में गिरा कर भूरा कर देता हैं !!
लाल का पता नहीं पलाश से पूछ लेना, शायद उसे पता हो!!
प्रकर्ति सामंजस्य बिठाती हैं, सारे मिलते हैं तो इंद्रधनुष बन जाता हैं!!
देखा होगा, सावन में!! आसमान भी मतलबी हो कर सफ़ेद नीले में चुनाव करता हैं!!
नीले से सफ़ेद, सफ़ेद से नीला होता रहता हैं!!
छठा तो तभी दिखती हैं, सावन की अनुभूति आती तभी हैं!!
हवा भी मनचंली हो जाती, बालों को छोड़ो रूह को भी छू लेती हैं!!
वो जो बैठक चल रहीं थी, जाम पे जाम छलक रहे थे!!
तुम्हारा ध्यान किधर था, महफ़िल में तो नहीं था!!-
वो जो इठलाती हुईं आई थी, दुप्पटा संभाले नहीं सम्भल रहा था!!
सड़क तप के आग उगल रहीं थी, हवा में शायद अँगारे थे!!
मैं तो नीम के पेड़ की छाव में समोसे खा रहा था !!
चाय एक हाथ में थी, अजब बात हैं दोनों गर्म थे!!
तुमनें आते ही पानी क्यों माँग लिया, मिल तो शरबत भी रहा था!!
बेल पत्थर का था, शायद तुमनें कभी पिया ना हों !!
मेरी बात छोड़ो, मेरी तो दो ही लत बहुत हैं!!
एक घड़ी घड़ी चाय और दूसरी वो ही जिससे तुम नफरत करती हों!!
पास फटकने देती नहीं हों, बदबू कहाँ से आ जाती हैं!!
जब तुम्हें मेरे संग चलना नहीं हैं, तो फ़र्क़ क्या पड़ता हैं!!
बेमानी ज़िद हैं, तुम्हारी!! एकटक मुझमे क्या तकती हों!!
हमारे रस्ते अलग, मंज़िल तो खैर बहुत दूर की बात हैं!!
वो जो इठलाती हुईं आई थी, दुप्पटा संभाले नहीं सम्भल रहा था!!
सड़क तप के आग उगल रहीं थी, हवा में शायद अँगारे थे!!
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ऋतु का क्या है, अदलती बदलती रहती हैं!!
जीवन का चक्र जन्म और मृत्यु के बीच में पेंगे मार लेता हैं!!
हिलोरे तो तुम भी मार रहीं थी, बारिश में भीग कर!!
एक तो सफ़ेद कुर्ती वो भी तंग, दुपट्टा जाने कहाँ फेंक दिया !!
बारिश की सोंधी खुशबू, मेरी शर्ट से क्यों आनें लगी !!
क्या पोछा था, उससे !! पानी में वो नहीं गिरी थी!!
पड़ा तो मेरा तौलिया भी था, बदन उससे पोछ सकती थी!!
आईना बता रहा था, बारिश का पानी नें बहुत कुछ धो दिया!!
कपड़े जिस डोर पर डालें थे, सूखने के लिए, नाप वो लें रहे थे!! मैं नहीं!!
खिड़कियाँ, दरवाजे बंद करने होते हैं, पूरे कमरे का मुआयना करने से पहले!!
अवस्था में तो तुम जिस थी, उसमेँ मेरी नज़र से क्या बच रहा था!!
इतराना पंखा देख कर ही था, तो मुझे क्यों बुला लिया!!
मुझे तो फर्श पर जम रहीं, साँसों की गर्मी बता रहीं थी!!
बारिश मेरे लिए, सौगात लें के आई हैं!! अतुलनीय और अदभुत!!
नजरें क्यों चुराने लगती हों, हमारे मिलन होते ही!!
अपनी कलाईया खुद क्यों काटने लगती हों!! मैं तो हिला भी नहीं!!
तुम हमेशा बहुत जल्दी में रहती हों, हिलने में भी बाज़ी मार गई!!
मेरा काम आसान पर आसान किए जा रहीं थी!!
जो मुझे उठाना था, वो तुम उठा रहीं थी!!
सबूत तो मेरी मुट्ठी में थे, पंजे जमीं पर, निगाहेँ कुछ कहना चाह रहीं थी!!
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एक ओस की बून्द जम गई, उस मेज़ पर !!
रखी थी जिस पर अर्जी तुम्हारी रिहाई की !!
तुम जैसा तो मैंने कभी देखा भी नहीं, सज़ा पखवाड़े की थी !!
उसे भी ज़िद में तुमनें उम्र कैद में बदलवा लिया !!
कुछ तो तुम, थोड़े अकड़ में थे ही!! चप्पल में लोहा क्यों लगवा लिया!!
कमर झुकी हों गर, लाठी काम आती हैं, तोड़ने को किसने कहा था !!
जुर्म तुम्हारा ऐसा कोई खास नहीं था, मिजाज़ तलख़ था!!
पेशानी पर पसीने की बूंदो की उम्मीद थी, उस पर पानी फिर गया!!
माफ़ी की दरकार थी, फ़ितरत और नियत को भाँप ना पायी !!
दुनिया देखी हैं, पर तुम जैसा ना देखा!! झुका तो तुम्हें दिया था!!
ख़ुशी मिली पर घास में क्या ढूंढ रहे थे, बाली तो मेरे कानों में थी!!
रिहाई तो तुम चाह नहीं रहे थे, कैद मैं दें नहीं पा रहा थी !!
कैद खाने से भी पुल निकले तुम्हारे, तारीफों के!!
वहाँ क्या कर आएं, भेजा वहाँ तुम्हें चिढ़ाने के लिए था!!
एक ओस की बून्द जम गई, उस मेज़ पर !!
रखी थी जिस पर अर्जी तुम्हारी रिहाई की !!
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वो जो बाली पे तुम इतरा रहीं थी, बार बार अपनी चूड़ियाँ खनका रहीं थी!!
पायल जिसमे तुमनें दो घुंगरू और डाल रखें थे!!
लब पे जो लाली लगायी थी, वो मेरे कॉलर पर कैसे आ गई!!
मैं तो तुमसे दूर खड़ा था, एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में चाय थी!!
पता नहीं, किसे ढूंढ रहीं थी, निगाहें तो तुम्हारी खिड़की में अटक रहीं थी!!
बार बार दरवाजे को क्यों खोल बंद कर रहीं थी!!
कपड़े तुम्हारे तो बिस्तर पर थे, अलमारी में क्या ढूंढ रहीं थी!!
वो जो सोने की चेन, दाँत से भींच रखी थी !! निशान पड़ गए हैं, वहाँ जहाँ दिखते भी नहीं हैं !!
इतना कठोर दिल का तो मैं हूँ नहीं, नरम मिजाज़ और कड़क चाय का शौक़ीन हूँ !!
अधूरा ख्वाब, आधी तस्वीर, अनकही बातें गहरी टीस देती हैं !!
उम्र गुजर गई, शोहरत कमाने में, गर दौलत कमाई होती तो शोहरत खरीद लेता !!
दुआएं तो झोली में बेहिसाब रहीं हैं, हिसाब में कभी उनके आंकड़ो का जिक्र तक नहीं हैं !!
कुछ उन्होंने दी जिनका हाथ नहीं छोड़ा, बाकी उन्होंने जिनके दामन बचा लिए!!
दी तो उन्होंने भी थी जिनके रास्तों के कांटे चुन लिए, दौलत मिली होती तो झोली खाली ही रहती!!
वो जो बाली पे तुम इतरा रहीं थी, बार बार अपनी चूड़ियाँ खनका रहीं थी!!
पायल जिसमे तुमनें दो घुंगरू और डाल रखें थे!!
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दुनिया जीत के आया था, दुश्मन के हौसले पस्त थे!!
खेत, खलिहान और बाग़ अपने नाम करवा चुका था!!
शराब का प्याला खाली ना हों, हर कोई बोतल खोले खड़ा था!!
खजाने भरे हुए थे, नई नई लौंडिया नाच दिखा रहीं थी!!
शायर क़ाफ़िया मिला रहे थे, महफ़िले रंगीन हुईं पड़ी थी!!
आँखें नम हुए जा रहीं थी, गालों की रोशनाई फीकी पड़ रहीं थी!!
मद्धम आवाज़ में उसने जब पूछा क्या खाये जा रहा हैं!!
गम का नाम, ज़बान पे आते आते पता नहीं कहाँ गुम हों गया!!
हैरान था, परेशान था, असमंजस कहते हैं उसे शायद!!
क्या था, मरते वक़्त उस दुश्मन की ज़बान पर!!
वो दुश्मन जिसे नेस्तनाबूत कर चुका था, जिसके शहर बियाबान पड़े थे!!
शमशीर जिसके गले पर टिका रखी थी, वो दुआँ दुआँ क्यों चिल्ला रहा था!!
चिल्लाना उसे ईश्वर, भगवान या अल्लाह चाहिए था!!
मांगना उसे रहम या सलामती की भीख चाहिए थी!!
ये मालूम था!!दुआ का मोल होता हैं, खरीदी जाती हैं!!
व्यापार हैं, व्यापारी हैं, मंडी हैं तो खरीदार भी होंगा ही!!
ये चंद पलों का मेहमान, दुआँ किस चीज़ की माँग रहा था!!
नशा जब उतरा सवेरें, तो थोड़ा थोड़ा समझ में आया!!
मृत्यु माँग रहा था, हार में भी अपना फैसला करवा चुका था!!
कह वो ये रहा था, गर बच गया तो फिर लड़ूंगा!!
चक्कर में पड़ गया, शीश उसे नमन किया!!
जिसे जीत समझ के जश्न मना रहा था, वो ही उसकी हार थी!!
दुनिया जीत के आया था, दुश्मन के हौसले पस्त थे!!
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