ऐ रात,
जाने क्यों,
हमेशा से मुझको यूँ,
तू अच्छी सी लगती है।
ये तारो की छांव,
और चांद की चांदनी,
मेरी रूह में बस सी जाती है।
ये ठंडी हवा,
हर तरफ शांति,
जैसे जीवन का अर्थ समझाती है।
मन विचरने लगता है,
कल्पनाओ के सागर में,
और हकीकत झूठी सी लगती है।
अकेले होके भी,
किसी अजनबी,
के साथ होने का एहसास तू दिलाती है।
युही ठहर जाए तु,
ये मन चाहने लगता है,
जैसे जैसे सवेरे की घड़ी पास आती है।
जब करती हूं मैं तुझे बया,
अपना हाल-ए-दिल,
तू मुझे जीने का मतलब बताती है।
एक अलग सा रिश्ता है,
तेरा और मेरा,
जिसे तू हमेशा निभाती है।
जब मैं बिखर जाती हूं,
खुद ही खुद से दूर हो जाती हूं,
तब तू ही मुझे मुझसे मिलाती है।
आगे बढ़ने का हौसला दिलाती है।
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