यार भी तुम,
प्यार भी तुम,
इस जीवन के,
परिवार भी तुम..!-
इश्क़ दी नुमाइश है
रुह दी फरमाइश है
जिस्म दी आजमाइश है
रिश्ता दी किथे ख्वाइश है-
आया था कभी, अरमानों की बहार लिए हुए
श्रावण के जैसे, बूँदों की फुहार लिए हुए
किट्टू, जिन्दगी से वो चला गया मेरी,
किसी ओर की खुशियों का मनोहार लिए हुए-
वो वक्त ओर था,
जब बहुत शिकवे थे।
तीसरा कुछ भी कहता था,
ताने तुम पर कसते थे।।
ये वक्त ओर है,
अब सब सुलझा है।
तीसरे लाख कोशिश करते रहे,
बस सम्मान तुम्हारा करते हैं।।-
जब अंदर ही न आना है,
तो क्यों दरवाजे पर दस्तक देना..!
जब मन तक ही न जाना है,
तो क्यों मस्तक का भक्षक बनना.!!-
कभी हँसतों ने रुलाई,
तो कभी रोतों ने हँसाई..।
कभी उठतों ने गिराई,
तो कभी गिरतों ने उठाई..।
कभी खुशियों में तन्हाई,
तो कभी तन्हाईयों में खुशी आई..।
कभी अपनों में बेगानी,
तो कभी बेगानों ने अपनाई..।
जिन्दगी की जादुगिरी,
कभी किसे, कहाँ समझ आई..।-
कहने को बहुत उम्र गुजार चुकी हूँ..
लेकिन आज भी वही छोटी बच्ची हूँ..
कहने को बहुत ही अभिमानी हूँ..
लेकिन आज भी वही सयम वाली हूँ...
कहने को सब कुछ भूला चुकी हूँ..
लेकिन आज भी अंदर ही अंदर रोती हूँ..
चली थी कभी सब कुछ सवारने..
लेकिन अपने आप को ही गुमा चुकी हूँ...
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Tum mere liye bahut kuch kar rahe ho...
Mujhe tumne bahut kuch diya hai...
Now I want only one thing
on this sibling festival
that's "friendliness".
I feel lonely... Also with family members.
I don't share
my thoughts, feelings with you comfortably...
So, please give me space for my comfort zone.-
कलम ने साथ छोड़ दिया
कलम को भी क्या इलम
बंधन जो था कभी,
तुमने ही तो तोड़ दिया-
अहसास, इस कदर खिलखिलाने का
न सोचे कभी, बिखर जाने का
वक्त है, डगर-डगर चलने का
न सोचे कभी, डगमगाने का
वक्त बदलते, अहसास बदले
केवल सोचे उभर जाने का..-