Kiran Sharma  
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Joined 21 November 2019


Joined 21 November 2019
22 JUN AT 21:56

बची हुई भी बिता लेते
जिस भरम में उम्र तमाम बिता दी
बुरा हो तेरा, बुरे वक़्त
क्यूँ अपनों के चेहरों से नक़ाब हटा दी

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10 JUN AT 9:23

तिनकों ने सँभाला है अक्सर डूबतों को
उनको मालूम है अपनों से बिछड़ने का ग़म

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27 MAY AT 9:23

अंतर है बहुत.....

एक उम्र में हम भर देना चाहते हैं
मन को सारे आकाश में
और एक उम्र के बाद भर लेते हैं
मन में सारा आकाश......

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4 APR AT 21:37

रहिए अहसानमंद अँधेरों के
जिनसे रौशनी की अहमियत है
वरना लोग तो मुसलसल रौशनी से भी घबराए हुए हैं

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18 MAR AT 22:55

सुनो,इस हद तक ही बेवकूफ़ बनाना
के अहसास भी ना हो मुझे....
वरना लोगों का क्या, वो तो अब भी
पागल ही समझते हैं मुझे....

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1 MAR AT 23:47

कई बार यूँ भी होता है
वो तथाकथित अपनों के बीच पसरा अजनबीपन
और तथाकथित अजनबियों संग सिमटा अपनापन
उसके बीच खलता है बहुत, मन का अकेलापन
कई बार यूँ भी होता है

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6 FEB AT 22:54

बहुत आसानी से
आप कह सकते हैं...वो मेरा दोस्त है...
बहुत मुश्किल है
ये कह पाना कि... मैं उसका दोस्त हूँ....

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2 FEB AT 20:26

कभी ग़म लफ़्ज़ों में ढाले,कभी लफ़्ज़ों ने ग़म पाले.....
ज़िंदगी, कुछ इस कदर तमाम, रही लफ़्ज़ों हवाले....

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30 JAN AT 19:18

फ़ुर्सत में हों तो पूछते हैं हाल, अपनों का
ए ख़ुदा, अपनों को कुछ फ़ुर्सत अता कर

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27 JAN AT 20:52

माना कि मौसम सर्द है
पर इतनी भी चालाकियाँ ना ओढ़ा कीजिए
दुःखते नहीं हैं कांधे क्या
कुछ रहम हम पर, कुछ ख़ुद पर भी कीजिए

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