Kiran Sharma  
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Joined 21 November 2019


Joined 21 November 2019
17 APR AT 16:38

इक उदासी है
जो बहुत गहरे
भीतर तक....
पसरी हुई है
बड़े सुकून से
इत्मीनान से.....
उसे आराम से
पसरा देख अमूमन
कुछ नहीं कहती....
पर कई बार
झींझोड़ती,धकेलती हूँ
खींचती हूँ ताकत से
सुकून देखो उसका
पड़ी रहती है
गहरे, ऑंखें मूंदे
अनसुना कर मुझको.....
इक उदासी....

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9 APR AT 16:34

हुआ कितनी बार कि
जब-जब दुखों से घिरा पाया स्वयं को
कुछ भी करने में असमर्थ पाया स्वयं को
दिखते हैं मेरे लिए,प्रार्थना में उठे तेरे हाथ
आँचल के कोने में मनौती की बँधी गांठ
और प्रेम,विश्वास,श्रद्धा से भरा तुम्हारा साथ
माँ......
तुम बहुत याद आती हो......

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21 MAR AT 18:26

उन्होंने समझाया और बताया
लचक जाना, झुक जाना
रिश्तों को है ग़र बचाना......
सुनो, घास को है पूछना
रिश्तों के इस जंगल में
वो,और कितना लचके
कितना झुक जाए......
सोच, समझ...
उसे भी बताना.....

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20 MAR AT 16:44

देखा है कई बार
आँसू...आँखों को नहीं
लफ़्ज़ों को भिगो देते हैं......
भावों के समंदर में
शब्दों को डुबो देते हैं.....

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10 MAR AT 20:00

झरने से ले
नदिया के
ढल जाने तक....
सब आँसू तो
हिम ने
सागर को दे डारे.....
फिर शिकायत
जग को
समंदर तो सब खारे....

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25 FEB AT 22:26

आप अच्छे हैं
अच्छी बात है...
पर जब आप "श्रेष्ठ"
समझने लगते हैं स्वयं को
और आंकने लगते हैं
सामने वाले को कमतर.....
तब.....
आपको नहीं लगता
आपकी "श्रेष्ठता
औंधे-मुँह पड़ी होती है....
भीतर ही भीतर कहीं....
सुनो....
"अच्छाई, श्रेणीबद्ध नहीं होती कभी"...

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21 FEB AT 22:55

भीगा मन, ऑंखें नम हैं
अब आँसूओं का हिसाब कौन रखे
तुम अपनों में थे याद है
अब कितने अपने थे माप कौन रखे

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18 FEB AT 15:05

ये वसीलें हैं ख़ुदा तक जाने के
टूटी ख़्वाहिशें, आँसू और ग़म....
याद करो ख़ुशियों में कितना
नज़दीक रहते हैं ख़ुदा के हम....

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3 FEB AT 21:41

चुभती बहुत हैं दिलों के बीच आ जाएँ ख़ामोशियाँ
सुनता कहाँ है कुछ जब शोर मचाएँ ख़ामोशियाँ

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30 JAN AT 22:39

छाँव बरगदी इंसान को, पर बरगद गमले में चाहिए
आब तूफ़ानी दरिया का, पर सरहद बदले में चाहिए

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